उर्दू-अखबार उसने प्रकाश कर दी है। किसी प्रकारका अनुभव न होनेसे और जोश रहनेसे लोग ऐसा ही करते हैं। लेकिन इससे वह अपने देश और जातिको कितनी हानि पहुंचाते हैं इसकी उनको कुछ भी ग्वबर नहीं है। लवकने इतना विचारनेकी चेटा भी नहीं की जो बाने में लिग्नाता है, वह मच हैं या नहीं और उनका धम्मसे कुछ सम्बन्ध है या नहीं । “जमाना" हिन्दू सम्पादकके हाथ में है, इससे वह हिन्दु कहा जा मकता है और उसकी राय भी एक हिन्दृकी राय कही जा सकती हैं। भारतवपमें हिन्दू और मुसलमान दो बड़ी जातियां हैं। दोनोंक शिक्षित लोगोंके विचारों: हम एक विचित्र भेद देखते हैं। शिक्षित हिन्दृ अपनी जाति, धर्म और ममाजकी, जहाँ तक बने निन्दा करते हैं । समाजक गुणोंको छिपाते हैं और दोपोंको बढ़ा बढ़ाकर दिग्वाते हैं। उधर शिक्षित मुसलमानोंका टीक इसके विरुद्ध आचरण है। वह अपनी जाति और धर्मके दोपोंको दबाकर गुणोंको प्रकाशित करते हैं। यदि किसी दोपको दूर करनेकी चेष्टा करते हैं तो बहुत उत्तम गतिसे। पक्षाबके शिक्षा विभागमें एक उर्दू पोथी बनी थी। उसका नाम था "रसम हिन्द"। उसके पहले अंशमें हिन्दुओंका हाल था और दसरमें मुसलमानोंका। हिन्दुओंके विषयमें जो कुछ लिखा गया था, वह एक हिन्दूने लिखा था और मुसलमानी अंश एक मुसलमानने । हिन्दु अंशमें पहले कुछ हिन्दू-धर्म और धर्मकी पुस्तकोंका वर्णन है और पीछे दिल्लीके रहनेवाले हिन्दुओंकी दो कहानियां। उसी प्रकार मुसलमानी अंशमें मुसलमानोंके धर्म और धर्म सम्बन्धी पुस्तकोंका पहले कुछ वर्णन किया गया है और पोछे एक मुसलमान घरानेकी कहानी लिखी गई है। पञ्जाबी स्कूलोंके लड़के इस पोथीको पढ़ा करते थे। स्कूलमें पढ़ते पढ़ते ही हिन्दू लड़के यह समझने लगते थे कि हिन्दू धर्म निरा ढकोसला है, हिन्दू निरे मूर्ख और गंवार हैं। यह भूत, प्रेत, पिशाचकी पूजा करते [ ३०३ ]
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