पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३४८

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हिन्दी-अखबार उनका बहुत ग्राहक भी नहीं मिले और इसीसे उनमेंसे अधिक बहुत दिन ठहर न सके। दूसरे समयके पत्रोंने यह सब त्रुटियां दूर करनेकी चेष्टा की और कुछ सफलता भी उनको प्राप्त हुई। लाहोरका मित्र विलास उनमेंसे पहला पत्र है। उसका जन्म सन १८५७ ई० में लाहोरके "अग्वबारे आम” आफिसमें हुआ । अखबारे आम उर्दृका पत्र है । उसका ३४ वां वष चलता है। "मित्र-विलास" जीवित होता तो उसका अठाईसवां साल चलता अर्थात अखबारे आमसे छः साल बाद उसका जन्म हुआ, पर अखबारे आम प्रेसका नाम जन्महीसे मित्र विलास प्रेस है। उसी नामके कारण उक्त प्रेसके हिन्दी पत्रका नाम “मित्र-विलास” पड़ा। उक्त पत्र बहुत ही भद्दे काशमीरी ढङ्गके अक्षरों में पत्थरके छापेमें छपता था । शायद उसके मालिक पण्डित मुकुन्दरामजी ही उसकी कापी लिखते थे । पर कई साल पीछे वह टाइपमें छपने लगा था। आकार छोटे साइजके चार पन्ने था। खबरों और लेखोंका ढङ्ग अखबारे आमकासा था । उसके निकलनेसे पहले पञ्जाबमें कोई उल्लेखके योग्य हिन्दी पत्र न था। केवल "ज्ञानप्रदायिनी" नामकी एक उदृ हिन्दीकी मासिक पत्रिका उसके जन्मसे पहले निकलती थी। जिसे ब्राह्म-समाजी बङ्गाली बाबू नवीनचन्द्र राय निकालते और ब्राह्मधर्म सम्बन्धी लेख उसमें होते थे। वह मित्रविलास प्रेसहीमें छपती थी। एक और मासिकपत्र इस पत्रिकाके ढङ्गहीका निकला था। उसका नाम "हिन्दबान्धव" था । वह भी ब्राह्म- समाजियोंहीने निकाला था। वह भी बन्द हो गया था। इससे कहा जा सकता है कि मित्रविलास ही पञ्जाबमें हिन्दीका सबसे पहला पत्र था। मित्रविलासवालोंका प्रेम स्वगीय भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्रजीसे बहुत था। उनकी कविवचनसुधा पत्रिकाकी देखा देखी ही मित्र- विलासका जन्म हुआ। उसके स्वामी स्वर्गीय पण्डित मुकुन्दरामजीको [ ३३१ ]