हिन्दी-अखबार
चाहिये कि जो लिपि वह चलाते हैं, वह १४ वर्षसे उनके भीतर ही है और
किसीने उसकी नकल नहीं की। यदि यह चाल अच्छी होती तो सर्वत्र
फैल जाती।
हिन्दी अग्वबारों में हिन्दोस्थान ही एक ऐसा पत्र है, जो बहुत दिनसे
दैनिक चल रहा है । अब तक वही हिन्दीका एक मात्र देनिक पत्र कहलाता
था। अब एक और भी हुआ है । तथापि वह पहला है, पुराना और
अच्छे ठिकानेसे निकलता है। इससे बार-बार जीमें यही इच्छा होती
है कि वह कुछ और उन्नत ढङ्गसे चलता तो अच्छा होता । दैनिक पत्रोंके
लिये जो सामान दरकार है, वह उसमें नहीं है। तारकी खबरोंको वह
सिलसिलेके साथ नहीं छापता। उसके ऐसे संवाददाता भी नहीं हैं, जो
देश विदेशसे उसे जरूरी ग्वबर भेज । न वह ऐसे स्थानसे निकलता, जहां
कुछ स्थानीय खबर हों। इन सब अभावोंको यदि वह इच्छा करे तो
पूरा कर सकता है। इसके मिवा सबसे अधिक मामयिक बातोंका
समावेश और उन पर आलोचना है, इसका उसमें एक दम अभाव है।
दैनिक होने पर भी उसके पाठक यह नहीं जान सकते कि रूस जापान-
की लड़ाईका क्या हाल है। विलायतमें क्या हो रहा है। भारतवर्षमें
क्या हो रहा है । बड़े लाट क्या कहते हैं और क्या करते हैं, इत्यादि। हम
यह नहीं कहते कि वह अपनी पालिसी पलट दे या अपनी राय बदल
दे। चाहे उसकी कुछही राय हो और कैसीही हो, पर उसमें वह मसाला
तो होना चाहिये जो एक दैनिक पत्रको दरकार है। यदि वह चेष्टा करे
तो यह दिखा सकता है कि एक हिन्दी दैनिक पत्र कहाँ तक अच्छा हो
सकता है और देशमें उसका कहां तक आदर हो सकता है।
राजस्थान समाचार
अभी कई एक पुराने हिन्दी अखबारोंकी बात कहना है । राजस्थान
समाचारकी बात उनसे पीछे कहना ठीक होता, पर दैनिक अरूगारोंकी
[ ३.
पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३७२
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