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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३७१

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास बद्ध रहता तो भी एक प्रकार कुशल थी। पर हम देखते हैं, यह हिन्दो- स्थानके हिन्दी शब्दों में भी संक्रामक हुआ जाता है। बुलाया शब्दको राजा साहब पूर्वी ढंगसे 'बोलाया' बोलते हैं । पर इस बोलायामें 'ओ' का उञ्चारण पूरा नहीं होता आधा होता है । इसीसे हिन्दोस्थान पत्रमें बुलाया लिखा जाता है। और इसी प्रकार :प' का आधा उच्चारण करने में ‘में' की जगह 'म्य' लिखा जाता है। शुद्धताके विचारसे इस प्रकार व्यर्थ कष्ट पाना ठीक नहीं है । यदि राजा माहवको स्वरोंके अधिक और कम उच्चारण करनेका इतना खयाल हो तो वह उस चाल पर चल सकते हैं, जिस पर ग्रियर्सन साहब और महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी “पदुमावति' के एशियाटिक सोसाइटीवाले संस्करणमें चले हैं। उस पुस्तकमें स्वरोंके पूरा उच्चारण करनेको तो वही शकलं रखी हैं, जो हैं और कम उच्चारण करनेके लिये उनको शकलमें जरा भेद कर दिया है, जिससे असली शकल भी बनी रहती है और पूरा भेद भी जान पड़ता है । समयकी जरूरतने 'ए-रे-ओ-ओ' का एक-एक ह्रस्व रूप और खड़ा कर दिया। अच्छा ही है। इसी प्रकार इस पत्रके नाम पर भी बहुत तकरार है। कितनेही व्याकरणसे खंच तान कर अर्थ निकालनेवालोंसे पूछा कोई भी हिन्दोस्थान नामको व्याकरणसे शुद्ध सिद्ध नहीं कर सका। जब ऐसा है तो क्यों एक गलत नामके रखनेकी चेष्टा की जाती है। हम देखते हैं कि उक्त पत्रमें जहाँ-जहाँ हिन्दुस्थान शब्द आता है वहां-वहां उस पत्रके नामपर हिन्दोस्थान बना लिया जाता है। हर आदमी कोई एक हठकर सकता है और उस हठको निबाह भी सकता है, पर पढ़े-लिखे और समझदार आदमियोंका काम है कि निकम्मी हठको पकड़ कर न बैठ। भाषा और लिपि दोनों ऐसी वस्तु हैं कि इनमें जहांतक अधिक लोगोंकी एकता रह सके, उतनाही अच्छा है । हिन्दोस्थानके चलानेवालोंको यह भी देख लेना [ ३५४ ]