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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३७६

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हिन्दी-अखबार फिरसे उनके पुराने मतपर ला दिया। नये महामण्डलकी ओर आनेसे पहले उसके विचार कुछ बीचो-बीच हो चले थे। अन्तको पुरानी तरफ झुक गये, अच्छा ही हुआ। ____ दो-एक बात राजस्थान समाचारकी भापाकं विपयमें भी हमें कहनेकी जरूरत पड़ी है। अजमेरमें एक हिन्दी अखबारकी जैसी भाषा हो सकती है, उसके हिसाबसे उक्त पत्रकी भाषा किसी प्रकार बुरी नहीं, वरञ्ज अच्छी है। पर कभी-कभी उक्त पत्र अपनी भाषाको और भी ऊंचा लं जानेकी चेष्टा करता है, उतनी दूर उसे नहीं जाना चाहिये। क बार एक पुस्तकको आलोचना करते हुए उसने लिखा था- "इस पुस्तकमें भापाकी बहुत-सी गलतिय हैं " हमको यह पढ़कर जरा अफसोस हुआ था कि जिन्हें अपनी “गलतिय” को खबर नहीं है, यह दूसरोंकी भूल निकालने चले हैं। इसी प्रकार उक्त पत्र में 'मूलिय, स्त्रिय' आदि लिखा जाया करता है। यह ऐसी भूल हैं कि ग्वास हिन्दुस्थानियोंके मिवा भारतवर्ष के दूसरे प्रान्तोंके लोग जब तक भलीभांति व्याकरण न पढ़ तब तक उनका सुधार नहीं कर सकते और न उन भूलोंको समझही सकते हैं। केवल एक बात राजस्थान समाचारकी चालके विपयमें हम और कहेंगे। वह यह कि जो लेख दूसरे अखबारोंसे उसमें उद्धृत हों, उनमें उनका नाम दे। साफ नाम न देना या नामका कुछ इशारा बनाकर देना उत्तम चाल नहीं है। देखा देखो दूसरे पत्र भी अपनी चाल बिगाड़ते हैं। किसी पत्रसे कोई मजमून नकल करना जिम प्रकार कुछ दोप नहीं है उसी प्रकार उसका साफ नाम दे देना भी इज्जनको घटाता नहीं है, वरञ्च उससे नाम देनेवाले पत्रकी कुछ इज्जत बढ़ती ही है। पर नाम न देनेसे जो लोग नहीं जानते वह तो कुछ नहीं कह सकते हैं, किन्तु जो जानते हैं कि यह लेख अमुक पत्रसे नकल किया है, वह नकल करने-