हिन्दी-अखबार उनका इन्तकाल हो गया। अब उनकी विधवा पन्नो मोतीबेगम उक्त पत्रको निकालती हैं। इस पत्रने कई रङ्ग बदले। छोटे बड़े कई प्रकारके कागजोंपर छपता रहा। अधिकतर लीथोहीमें छपता था। बीचमें कुछ दिनके लिये इसके हिन्दी कालम टाइपमें भी हो गये थे, अब फिर लीथोहीमें छपता है। आजकल इसके १२ पृष्ठोंमेंसे ४ हिन्दीके हैं और ८ उर्दूके। रजवाड़ों-विशेषकर राजस्थानकी खबरोंको लिखनाही इसने सदासे अपना प्रधान काम समझ रखा है। मौलवी मुरादअली बड़े बेधड़क और बेलगाम आदमी थे। अगरेजी नहीं पढ़ थे, कानून-फानूनको भी कुछ नहीं समझते थे। इससे खूब बेधड़क होकर लिखते थे । एकाध बार लाइबलमें उनको सजा भी हुई। तो भी लिखनेमें उनका ढङ्ग कुछ बदला नहीं। स्थानीय कोतवालसे लड़ गये थे, तब भी नहीं डरे । जो कुछ हो उनके बेधड़कपनसे भी कभी-कभी बहुतसी गुप्त बातोंका भेद खुल गया और बहुत लोगोंका लाभ हुआ। उनके लेबोंमें यदि कुछ उजड्पन कम होता तो उनकी बातका बहुत वजन होता। तथापि गुप्त रीतिसे अत्याचार करनेवाले लोग उनसे बहुत कुछ डरा करते थे। दुःखकी बात है कि इस पत्रको लिखाई-छपाई कभी अच्छे ढंगकी नहीं हुई। अब भी वही दशा चली जाती है। मौलवी मुरादअलीमें कई गुण थे। वह गोरक्षाके बड़े पक्षपाती थे। हिन्दुओंसे द्वेष नहीं रखते थे और कभी किसीसे दबते नहीं थे। उस ढङ्गके लोग भी अब कम देखनेमें आते हैं। पुराने ढरके दबंग लोगोंका वह एक नमूना थे । रियासती अखबार सर्वहित राजपूतानेकी बूंदी रियासतकी ओरसे "सर्वहित" नामका एक हिन्दी पत्र जारी हुआ था। अब नहीं है। उक्त पत्रका जन्म फाल्गुन शुक्ला [ ३७५ ]
पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३९२
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