पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४०९

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास गुण्डे भी दबाते रहे हैं और पुलिस भी। इधर गुण्डे सचमुचही गुण्डे हैं । जो उनसे दबे उसे खूब दबाते हैं, पर जो उन्हें दबावे उससे दबते भी खूबही हैं । इसी कारण पुलिससे वह खूब दबते थे और रईसों पर खूब शेर थे । कभी-कभी पुलिससे उनका खूब मेल भी रहता था। उस समय काशीके रईसोंकी और भी शामत आजाती थी। उनपर दोहरी मार पड़ती थी। अब वह समय नहीं है, तथापि यह दशा एकदम बदल भी नहीं गई है । अब भी पुलिसकी जबरदस्ती काशीमें खूब है और गुण्डोंकी भी वहां खासी चलती बनती है। जबतक एक जबरदस्त अंगरेजी अख- बार काशीसे न निकले, तबतक किसी हिन्दी अखबारका वहां स्वाधीनतासे लिखा जाना कठिन है। काशीकी पुलिसकी जबरदस्तीकी बातें छापनेका साहस “भारत- जीवन” ने कभी नहीं किया। हां, बाहरी अखबारों में उनपर बहुत कुछ लिखा पढ़ी हुई है । एक कोतवालकी खबर कलकत्तेके “उचितवक्ता” पत्रने खूब ली थी और अन्तको कोतवाल साहब काशीसे बाहर किये गये थे। इसी प्रकार और काशीकी कितनीही बातें हैं, जिन पर बाहरके अख- बारोंको लिखापढ़ी करना पड़ती है। “भारतजीवन" उनके विषयमें चुप रह जाता है। ___“भारतजीवन" के सम्पादक बाबू रामकृष्ण वर्मा हैं। सहकारी सम्पादक बहुत लोग हुए हैं। उनमेंसे स्वर्गीय बाबू कार्तिकप्रसादजीने इसकी कई साल सेवा की, वह एक खासे ढङ्ग पर इस पत्रको चलाते रहे । उनकी बीमारीके दिनोंमें तथा उनकी मृत्युके बाद बाबू हरिकृष्ण जौहर तथा गंगाप्रसाद गुप्तने कुछ दिन इसका सम्पादन किया है। यहां यह भी बता देना उचित है कि “भारतजीवन" के सहकारी सम्पादक हो असलो सम्पादक होते हैं । सम्पादकका पद सम्पादक महाशयने अपने [ ३.२ ]