गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास मूल्य केवल दो पैसा है) अब सबसे हमारी यह प्रार्थना है कि इस भारतमित्रको अपना देशी समझके आदरसे ग्रहण करं।" बांकीपुरका “बिहारबंधु" भारतमित्रसे पुराना है। उसने भारत- मित्रको पाकर जो आलोचना की थी उसका जरासा नमूना दिखाते हैं। उससे भी उस समयकी भाषाका पता मिलेगा। “चन्द दिनोंसे नागरी होंमें एक भारतमित्र नामका अखबार कलकत्तेसे निकलने लगा है। अभी इस अखबारकी लिखावट इतनी उमदे नहीं है लेकिन उम्मीद है कि थोड़े दिनोंके बाद लिखावट अच्छी हो जायगी।” ___ तीन संख्याओं तक भारतमित्रका वार्षिक मूल्य स्थिर नहीं हुआ था। चौथी संख्यामें वार्षिक II) मूल्य और || आना डाक महसूल स्थिर हुआ। यहां तक यह पाक्षिक था। १० वीं संख्यासे साप्ताहिक हुआ और हर वृहस्पतिवारको निकलने लगा। मूल्य भी बढ़कर तीन रुपये साल नियत हुआ। इसका आफिस ६० न० सूतापट्टीमें शालग्राम खन्ना एण्ड कम्पनीकी दुकानमें स्थापित हुआ। उस समय इसके लिखनेका रंग ढंग अच्छा हो गया। वाणिज्य राजनीति देशनीति आदिके लेख इसमें दिखाई देने लगे। १५ वीं संख्यामें इसका संस्कृत मोटिव बदल कर हिन्दीमें इस प्रकार बना- सगुण खनित्र बिचित्र अति खोले सबके चित्र । शोधै नर चारित्र यह भारतमित्र पवित्र ।। २२ वीं संख्या तक उसी आकार में छपकर इसने उन्नति की। २२ वीं संख्या १६ दिसम्बर सन् १८७८ ई० को डिमाई आकारके पूरे दो पन्नों पर निकली। तबसे यह पूर्णचन्द्रोदय यन्त्रमें छपने लगा। [ ४०० ]
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