हिन्दी-अखबार बड़े आश्चर्यकी बात यह है कि आजतक ऐसा कोई समाचारपत्र प्रचारित नहीं हुआ जिससे हियांके हिन्दुस्तानी लोग भी पृथ्वीके दूसरे लोगोंकी तरह अपने अक्षर और अपनी बोलीमें पृथ्वीको समस्त घटनाको जान सक क्या यह बड़ी पछतावेकी बात नहीं है जब कि इम १६ वी मद्दीमें बङ्गाली तथा अन्यान्य जातिके आदमी अपनी २ बोलीमें केवल एक समाचारपत्रको उन्नतिसे विद्यामे ज्ञानमे दिन दिन उन्नत हुए जाते हैं और हमारे हिन्दुस्तानी भाई केवल अज्ञान खटिया पर पैर फैलाये हुए पड़े हैं और ऐसा कोई नहीं जो इनको उम खटिया परसे उठाके ज्ञानकी किरण उनके अन्तःकरणमें प्रकाश करे बहोत दिनोंसे हम आशा कर्ते थे कि कोइ विद्वान बहुदी आदमी इस अभावको दूर करनेकी चेष्टा करंगे परन्तु आशा परिपूर्ण न हुई। इम आशाके परिपूर्ण न होनेसे हिन्दुस्तानियोंको सांसारिक खबर जाननेके लिये बंगालियोंका मुंह ताकते देखकर हमारे चित्तमें यह भाव उत्पन्न हुआ कि यदि एक ऐसा ममाचारपत्र प्रचलित हो कि जिसको हमारे हिन्दुस्तानी और मारवाड़ो लोग अच्छी तरह पढ़ सके तो इससे हमारी समाजकी अवश्य उन्नति होगी। दूसरे कई एक मित्रोंने भी हमको इस भारी कामको कर्नकी परा- मर्श दी और उन्हींकी परामर्शसे हमने इसको सर्वसाधारणके समीप भेजनेके लिये स्थिर किया। किन्तु एक बार यह चिन्ता हमारे चित्तको उत्साहित कर्ती थी दूसरी बार यह चित्तमें आता था कि इस भारी काममें अग्रसर होना हमारे ऐसे अयोग्य और मूर्खका केवल सर्वसाधारणके आगे अपनी हंसी कराना है परन्तु अन्तको कइ एक मित्रोंकी सहायतासे और सर्वसाधारणकी सहायता पानेकी आशासे हम इस भारतमित्रको सर्वसाधारणके पास प्रेरण करते हैं (और जिससे सब आदमी इसको ले सकं इस लिये इसका [ ३९९ ]
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