गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास % 344 जो आजकल पूनामें कृस्तान धर्मकी वृद्धि कर रही हैं। तब यह महा- राष्ट्रीय ब्राह्मण कन्या ब्राह्मण कन्या ही बनी हुई थी। सैर करती बंगालमें आई थी, आसाममें कामाख्याके दर्शनको गई थी। उसीका वर्णन उसने अपनी चिठ्ठीमें किया है। ३ जलाई सन् १८७६ ईस्वीसे भारतमित्रका आकार और बढ़कर रायल साईजके ४ वक हो गया। कागज भी कुछ और अच्छा हो गया। अब वह इसी आकारमें निकलने लगा। तीसरे सालका भारतमित्र अच्छे अखबारोंकी गिन्तीमें हो गया। उसमें विद्वानोंका अच्छा जमाव हो गया। और लेख आदिकी भी एक अच्छी शृङ्खला बनाई। इन दो तीन सालमें इसकी भाषाकी भी अच्छी उन्नति हुई। विज्ञापन अधिक निकलनेसे कुछ सजन उस समय बहुत घबराये थे। विश्वनाथ नामके एक सजनने चिढ़कर लिखा था कि इसका नाम इश्तहार-पत्र होना चाहिये। सन् १८८१ ईस्वीके जनवरीकी संख्याओंमें इस विषयके वादानुवादकी कई एक चिट्ठियां छपी हैं। हिन्दीमें केवल भारतमित्रही पत्र था, जिसमें पहले पहल विज्ञापनोंका इतना जमाव हुआ था। हिन्दीके उस समय जो पत्र थे, उनमें विज्ञापन बहुत कम होता था । इसीसे शायद उस समयके लोग विज्ञापनोंसे नाराज हुए थे। पर अब भी बहुतसे लोग विज्ञापनोंसे नाराज होते हैं। अब भी विज्ञापनोंकी आलोचना करके कुछ सज्जन कभी कभी अपनी अनुभव-शीलताका परिचय दिया करते हैं। पर उन्हें यह विचार कर लेना चाहिये कि सस्ते और बड़े अखबार बिना विज्ञापन नहीं मिल सकते। अगर विज्ञा- पन न हों तो ग्राहक लोग जिस मूल्य पर अखबार पाते हैं, उससे दूना देकर भी शायद न पा सकें। सन् १८८१ का भारतमित्रका फाईल देखनेसे स्पष्ट होता है कि इस समय वह योग्यतासे सम्पादित होता था और हिन्दी पत्रोंमें बहुत प्रति-
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