गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास यत, फरांस और अमेरिका जाता (३) अपने उद्योगसे एक शुद्ध हिन्दीकी यूनीवर्सिटी स्थापन करता और (४) पश्चिमोत्तर देशमें शिल्पकलाका एक कालिज खोलता।” ___ उर्दू हिन्दीके झगड़ेके लेख इस साल भी चलते रहे। हिन्दु- स्थानियोंको वालंटियर बनानेकी आवश्यकतापर भी कई लेख लगातार हैं। ५ मार्चकी संख्यामें स्वर्गीय महाराना सज्जन सिंहजीकी ६ कालमकी जीवनी प्रकाशित हुई है। इससे उनके जीवनकी बहुत-सी कामकी बात मालूम होती हैं। बहुतसे अच्छे-अच्छे राजनीतिक लेख इस वर्षमें लिखे गये। सालभरका एक अच्छा जखीरा इसके भीतर बन्द है। पडरीके स्कूल मास्टर सोहनप्रसादने “उर्दू हिन्दीकी लड़ाई” नामकी एक पुस्तक लिखी थी। मुसलमानोंने उसपर नालिश कर दी थी, इससे वह सचमुच लड़ाई हो गई थी। उसपर भी इस सालके पत्रमें कई लेख लिखे गये हैं। सन् १८८६ और ८७ १८८६ सालके आरम्भमें इनकमटेक्सपर कई एक लेख हैं। मार्च और अप्रैलके अङ्कोंमें दलीपसिंहके हिन्दुस्थानमें आनेकी चर्चा है। अप्रैलमें कलकत्ता-पांजरापोलकी नींव पड़नेकी बात है। आगे गोरक्षापर भी बहुत कुछ लिखा पढ़ी है, जो महीनों चली है। २० जूनको संख्यामें एकही साथ इन्दोरके महाराजा तुकाजी होलकर और ग्वालियरके महा- राजा जयाजीराव संधियाकी मृत्युका संवाद है। उसी संख्यासे कलकत्तमें चर्बी मिले हुए घीके बिकनेपर आन्दोलन आरम्भ हुआ है, जो आगे दूर तक चला है और उसपर बड़े-बड़े लम्बे लेख लिखे गये हैं। उस समय उसका फल भी अच्छा हुआ था। उसकी बात कौन्सिल तक पहुंची। और उसके लिये एक कानून भी बना। ___ २० जनवरी सन् १८८७ के नम्बरों में स्वर्गीया महारानी विको- रियाकी जुबिलीकी बात है। फरवरीके अटोंमें मिडिल पास लोगोंपर [ ४१२ ]
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