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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा पण्डित होकर मारवाड़ी जातिका यश बढ़ावे। -भारतमित्र १९०३ ई. पाण्ड प्रभुदयालु इन्दी-बङ्गवासीक मम्पादक पण्डित प्रभुदयालु चतुर्वेदी जवानीके आरंभमें इम असार संमारको त्याग गये। होलीपर अच्छे थे। गन पूर्व मंगलवारको उनकी तबियत खराब हुई। उसके माथही पंगका आक्रमण हुआ। कई-एक दिन गेग-भोग कर रविवारको चलते हुए। प्रभुदयालुजी आगग जिलेक पिनाहट नामक कमबके निवासी थे । चतुर्वेदियोंमें पाण्डे थे, इसीसे पाण्डे प्रभुदयालु कहलाते थे। वह कानपुर निवासी स्वर्गीय पण्डिन प्रतापनारायण मिश्रके प्रिय शिष्य थे । उनके पिता कानपुग्में बहुत रहते थे, इमीसे प्रतापनारायणजीसे उनका मेल हुआ। पाण्डजीने शिक्षा भी कानपुरहीमें पाई। उनकी जीवनी मबकी मब हिन्दी-बङ्गवामीसे सम्बन्ध रग्बती है। वहीं वह बालकसे युवा हुए और वहीं अपनी योग्यता बढ़ाई और उमी पत्रकी सेवा करते हुए समान होगये। ____ पण्डित अमृतलाल शर्मा हिन्दी-बङ्गवार्मीक आदि मम्पादक और जन्मदाता हैं। उन्होंने स्वर्गीय पण्डित प्रतापनारायणजीकी महायतासे प्रभुदयालुजीको पाया। जब वह हिन्दी-बङ्गवामीमें आये तो अखबारी विद्या कुछ नहीं जानते थे । वहीं उन्होंने मब मीखा और अग्वबार लिखनेमें निपुण हुए। अगरेजी वह एंट न्म तक पढ़ थे, पर अखबारी बात ममझनेमें बहुत अच्छे होगये थे। हिन्दी पढ़े थे और पण्डित प्रतापनारायणजीकी संगतसे उसकी बारीकियोंको जानते थे । उ और फारमी, वह कितनी पढ़े थे सो कह नहीं मकते, पर उर्दू किताब खूब पढ़ लेते थे, फारमी भी ममझते थे । संस्कृतकी मोधी पुस्तकं भी पढ़लेते थे । इन सब