हिन्दी-अखबार १६ नवम्बर १८६३ ई० से यह ६६ नया चीना बाजारसे जगन्नाथदास एण्ड कम्पनीके प्रबन्धसे निकलने लगा। उस समय तक यह पत्र एक कम्पनीके प्रबन्धसे निकलता था। उसीके मेम्बर लोगोंमें इसके जन्म- दाता पालनकर्ता सब थे। बाबू जगन्नाथदास भी कम्पनीके एक मेम्बर थे। अन्तमें कम्पनीने उन्हींको पत्र दे दिया और वही इसके मालिक हुए, जिनके यहाँ वह अब तक है । पानीका जुआ सन् १८६४ ई० से लेकर भारतमित्रकी बात इतनी पुरानी नहीं हैं, जिनका विशेष उल्लेख करनेकी जरूरत हो। तबतक ऐसा समय आ गया था कि हिन्दीमें और भी कई पत्र अच्छे अच्छे निकलने लगे थे। हिन्दी अखबारोंको अच्छी चर्चा होगई थी और हिन्दी पाठकोंकी संख्या भी बढ़ चली थी। इसमें केवल एक ही बात कहेंगे। वह पानीके जुएका आन्दोलन है। कई सालसे अफीमके खेलकी भांति पानीका खेल भी कलकत्ते में होता था, उसका प्रधान अड्डा अफीम चौरास्ते पर था। वहां यह खेल कई कोठियोंमें होता था। इसमें लाखोंकी हार जीत हर साल होती थी और गरीब तबाह होते थे। कितने धनी इससे कङ्गाल होगये थे। सबेरेसे लेकर रातके १० बजेतक इसकी धूम रहती थी। बदमाशोंकी संख्या इसके कारण बड़े बाजारमें बहुत ही बढ़ गई थी। भारतमित्रने इसका आन्दोलन आरम्भ किया। पहले उसे कई बार विफल मनोरथ होना पड़ा। पर अन्तको सन् १८६७ ई० में सफलता प्राप्त हुई। बङ्गाल गवर्नमेण्टने पानीका जुआ बन्द करनेके लिये एक आईन बना दिया। जुएवालोंको अपना काम बन्द करना पड़ा। तबसे बदमाशोंकी संख्या बहुत कम हो गई। यह आन्दोलन छोटे लाट इलियट साहबके समयमें आरम्भ हुआ और मेकञ्जी साहबके समयमें सफलताके साथ समाप्त हुआ। [ ४१७ ] २७
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