गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इति अगस्त मासके आरम्भमें कलकत्तेके बङ्गवासी पत्रपर सरका राजविद्रोहका अभियोग लगाया था। कलकत्तेके अखबारोंमें उस स इसी अभियोगका आन्दोलन था। अगस्तसे लेकर अक्टूबरके आर तकके अङ्कोंमें इस मुकदमेके लेख हैं। ___१४ जनवरी १८६२ ई०की संख्यामें प्रयागके प्रसिद्ध पणि अयोध्यानाथकी मृत्युका शोक समाचार है और अगली २१ जनवरी संख्या प्रिन्स अलबर्ट विकर ( हमारे वर्तमान महाराज एडवर्डके * पुत्र ) की मृत्युका शोक समाचार सहित काला बार्डर लिये निकली। इस साल भारतमित्रमें रुपयेके बट्ट पर बहुत प्रभावशाली लेख निकले है चांदीका भाव उस समय बहुत गिर गया था, रुपया बट्ट के हिसाब कोई दस आनेका रह गया था। ६ जूनकी संख्यामें कलकत्तकी जर कलोंमेंसे सांप निकलनेकी बात है। उन दिनों इसका भी ब शोर मचा था। ___ एक बात और आलोचना करनेके योग्य है कि ३ दिसम्बर स १८८१ से भारतमित्रमें “ॐ श्री गणेशायनमः' लिखा जाने लगा, जो । सितम्बर सन् १८६३ ई० तक रहा। १५ जून सन् १८६३ ई० तक इस दिनकर प्रकाश शामिल रहा। अब तक “भारतमित्र” ६०, नम्बर क्रासष्ट्रीटसे निकलता था। ३ अगस्त सन् १८६३ ई०को उसका आफिस ५, ताराचन्ददत्त स्ट्रीटमें डाक श्रीकृष्णजी बर्मनके प्रबन्धमें चला गया। इस समय वह बहुत ब आकारमें था। सुपर रायल कागजके बड़े दो वरक पर छपता था । य आकार उसने १५ जून सन् १८६३ से धारण किया। बड़ा आकार बड़ा आकार धारण करके "भारतमित्र" सचित्र होगया। प्रति सप्ता एक-एक दो-दो चित्र भी इसमें नियमसे निकलने लगे। इसी दशा [ ४१६ ]
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