भाषाकी अनस्थिरता उत्पन्न होते हैं पीछे व्याकरण। व्याकरण शब्दोंका अनुशासन करता है ।” ____ अब जरा अनुशासनका भाष्य सुनिये। फरमाते हैं-"पाणिनिका एक सूत्र है-'अथ शब्दानुशासनम्' इसका नाम है अधिकार सूत्र । यहां 'अनुशासन' में जो अनु उपसर्ग है, वह इस बातको सूचित करता है कि शब्दोंके अनन्तर उनका शासन किया गया है। अर्थात् पाणिनिने सदाके लिये यह शब्द-शास्त्र नहीं बनाया ; किन्तु उनके समय तक शब्दोंके जैसे प्रयोग होते थे, उन्हींका उन्होंने अनुधावन किया है-उन्हीं के प्रयोग-सम्बन्धी नियम उन्होंने बना दिये हैं।" यदि द्विवेदीजी सामने होते, तो पूछते कि महाराज ! यह जो आपने गड्डमड कई एक वाक्य आगे-पीछे मियां मदारीके गोलोंकी भांति उगल दिये हैं, इसका कुछ सिर-पैर है या खाली हिन्दीवालोंको हैरान करनेके लिये यह लीला दिखाई है। कृपाकरके यह तो बताइये कि पाणिनिके सूत्रके अर्थसे आपके ऊपरवाले वाक्योंमेंसे सबसे पिछले वाक्यका क्या सम्बन्ध है ? सदाके लिये बनाया या न बनाया, इसके कहनेसे आपका क्या प्रयोजन है ? यदि आप यह फरमावे कि मैंने जो यह भाषा और व्याकरणवाला लेख लिखा है, अब तकके हिन्दी लेखकोंकी मरम्मतके लिये है सदाके लिये नहीं, तो इसका क्या अर्थ होगा ? मेरे एक मित्र इन वाक्योंको सुनकर बोल उठे कि द्विवेदीजी बहुत-सो विद्या और बहुत तरहकी बातें एक साथ फांक गये हैं। वह सब आपके पेटमें बकर-कूद मचा रही हैं। आप एकको श्रीमुखसे निकालना चाहते हैं, तो कई लधड़-पधड़ करती आगे-पीछे निकल पड़ती हैं और सिलसिला खराब कर देती हैं। आप व्याकरण-शास्त्रका पता बताते हैं-"व्याकरण वह शास्त्र है, जिसमें शब्दों और वाक्योंके परस्पर सम्बन्धके अनुसार अपेक्षित अर्थके [ ४३७ ।
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