गुप्त-निबन्धावली आलोचना-प्रत्यालोचन हीको छाप बैठेंगे ? इसी प्रकार आपके "उन्होंने” या “आपने" के न जोड़नेसे पोथी यन्त्रालयाध्यक्ष महाशय या गदाधरसिंह न बन जायगी! आप क्यों इतने चक्करमें पड़ते हैं ? आप सच जानिये कि हिन्दीवाले आपकी “उसको” “उन्होंने" से जहाँ तक हो सकता है, बचते हैं। यही हिन्दी लिखनेकी रीति है, पर आप जानते नहीं। आगे आप इस वाक्यको दो टुकड़े करके लिखने और उसके लिये एक "ने" युक्त “कर्ता” रख देनेकी सलाह भी देते हैं। यह सलाह किसी मुर्देकी टांगमें लिखकर बांध दी जाय तो स्वर्गमें गदाधरसिंहके पास पहुंच सकती है। देख वह इसको पसन्द कर या नहीं। इसीपर फैसिला फरमाते हुए द्विवेदीजी लिखते हैं-"किसी- किसीका मत है कि सकर्मक और अकर्मक दोनों तरहकी क्रियाओंके लिये एक ही प्रकारका कर्ता हो सकता है। यथा- हम जब घर गये लड़केको बीमार देखा। "यहां पर ('यहां' के बाद 'पर' आपने नाहक खोंसा है) 'देखा' और 'गये दो प्रकारकी क्रियाय हैं ; पर उनका कर्ता 'हम' गये के लिये भी है और 'देखा'के लिये भी। सकर्मक 'देखा' के लिये हमने' की जरूरत नहीं समझी गई। इस तरहका प्रयोग व्याकरण-विरुद्ध है। पर व्याकरण सिर्फ अपने समय तकको भाषाके मुहाविरोंका नियमन करता है। अतएव यदि सब लेखक इस प्रकारके प्रयोगोंको साधु मान लें तो कोई आपत्तिको बात नहीं।" ____यही धोखा तो आपको खराब करता है। अजी जनाब ! बेचारा “हम” गये और देखा दोनोंका कर्त्ता नहीं बनना चाहता, केवल गये का कर्ता बनता है। 'देखा' अपने कर्ता हमने को अलग बुला रहा है। वह 'तो' सहित गायब है। क्योंकि 'अब' अपने लिये एक 'तो' भी चाहता है। यहां 'तो' और 'हमने' अलग कर [ ४६४ ]
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