भाषाकी अनस्थिरता - - भाषाके शब्दोंका दूसरी भाषामें जाकर अथ कभी-कभी बदल जाया करता है। यहाँ तक कि एक ही भाषामें एक शब्दके एकसे अधिक अर्थ होते हैं । 'गरीब' अरबीका शब्द है, फारसीमें इसका अर्थ विचित्रके साथ-साथ मुसाफिर भी हुआ। हिन्दीमें इसका अर्थ न विचित्र है, न मुसाफिर, हिन्दीमें दीनको गरीब कहते हैं। अब कहिये आपकी क्या सलाह है, यह शब्द रामचरितमानस और विनयपत्रिकासे निकाल दिया जाय या इसका अर्थ अजीब या मुसाफिर किया जाय? इसी तरह 'मुर्ग' फारसीमें पक्षीको कहते हैं, हिन्दीमें मुर्ग या मुर्गा पक्षी विशेष- का नाम हो गया। 'तमाशा' अरबी लफ़्ज़ है, उसका अर्थ है देखना और कुछ मित्रोंका मिलकर पैदल सैरको जाना। हिन्दीमें तमाशेका अर्थ खेल और किसी अजीब चीजका देखना है। पुरानी हिन्दीमें तमाशेकी जगह 'पेखना' शब्द मिलता है। यह तमाशेके असल अर्थकी तरफ दौड़ता है। हिन्दीमें 'चिड़िया' का अर्थ पक्षी है। दिल्ली और उसके प्रान्तमें 'चिड़िया' उस चिड़ियाका नाम है, जो घरों में रहती है और जिसको काशी आदिके देहातमें ‘गोरैया' कहते हैं। संस्कृतमें 'राग' शब्द अनुरागके अर्थमें आता है, बंगलामें 'राग' का अर्थ गुस्सा है, हिन्दीमें 'राग' का जो अर्थ है, यदि द्विवेदीजी न जानते हों, तो अपने “कल्लू अलहइत” से पूछ लं ; क्योंकि उसका आल्हा भी एक राग है, चाहे वह कितना ही गंवारी हो। द्विवेदीजीके बताये हुए परित्यज्य शब्दोंमें 'वाधित' के विषयमें हम कुछ नहीं कहते, पर 'आन्दोलन' और 'कटिबद्ध' कुछ बुरे नहीं हैं। Agitation की जगह 'आन्दोलन' तैयार किया गया है। संस्कृतमें इसका अर्थ वह न भी निकलता हो, तो भी हिन्दीमें इसका जो अर्थ लिया जाता है, वह बेजा नहीं है । 'कमर बाँधना' का अर्थ हिन्दीमें तैयार होनेका है। फारसीमें भी इसके लिये कमरबस्तन है। कटिवद्ध इसीसे बना। पर बद्धकटि चाहिये। यह [ ४८५ ]
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