पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५०४

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भाषाकी अनस्थिरता की कुछ कमी-सी मालूम होती है। बकौल अग्निहोत्रीजी, ऐसा लिखनेमें 'सज्जनानुमोदित शिष्टभाषाप्रणाली” कुछ दूर जा पड़ी ) हमने दोष देखलानेके इरादेसे ऐसा नहीं किया । ( नहीं-नहीं आपने गुण दिखानेके रादेसे ऐसा किया ! अग्निहोत्रीजी-जैसे सरल-चित्त-पुरुप भी इम वषयमें आपके तरफदार हैं। ) सिर्फ अपनी वातको स्पष्टतापूर्वक मझानेको ऐसा किया है।" शुद्ध मन और नेकनीयतीसे जो काम किया जाता है, आत्मारामकी मझमें उसके लिये किसी माफी-बाफीकी जरूरत नहीं है। मञ्चको सम खानेकी जरूरत नहीं है। यदि द्विवेदीजीने हिन्दी लेखकोंके दोष कनीयतीसे दिखाये हैं, तो आदि और अन्तमें माफी किम कसूरके लिये गी ? हो सके तो द्विवेदीजी यह बात आत्मारामको समझा दं। ___ आत्मारामने जो कुछ लिखा है, बड़ी नेकनीयती और साफदिलीसे उखा है। हिन्दीके पुराने और नये सुलेखकों और सेवकोंकी, उनके जेके अनुसार जैसी कुछ इज्जत उसके जीमें है, उसी हिसाबसे एक रत्ती ी कम इज्जत वह द्विवेदीजीकी नहीं करता। उसने जो कुछ लिखा है वेदीजीके लेखपर लिखा है, उनकी लेखप्रणालीपर लिखा है और उनकी इन्दीकी समझपर लिखा है। उनके ऊपर कुछ नहीं लिखा है। यद्यपि वेदीजीके एकाध तरफदारने आत्मारामके कथनको न समझ कर, कुछ- | कुछ कहना आरम्भ किया है। यहां तक कि 'कल्लू अलहइत' को पना ढोल बजाने और आल्हा गानेकी जरूरत पड़ी है, पर आत्माराम न सब बखेड़ोंसे दूर है। उसका जो कुछ सरोकार है, द्विवेदीजीके लेखसे , उनके शरीरसे या उनके कामोंसे कुछ नहीं है। द्विवेदीजीके एक रफदारने हिन्दी बङ्गवासीमें नाम छिपाकर “अनस्थिरता” को सिद्ध रना चाहा है। उसके कहनेका तात्पर्य यह है कि “संस्कृतसे 'अनस्थिरता' पद्ध नहीं हो सकती ; परन्तु हिन्दीमें जैसे अनरीति, अनरस, अनहोनी, । ४८७ ]