पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुप्त-निबन्धावली आलोचना-प्रत्यालोचना S अनमिल, अनमोल, अनसुनी, अनहुई, अनपढ़, अनहित, अनगणित आदि हैं, वैसे ही 'अनस्थिरता' भी शुद्ध है।” ठीक है, पर ऐसा लिखकर आप द्विवेदीजीकी बेइज्जती करते हैं। शायद द्विवेदीजीने आपकी यह बेतुकी हांक सुनकर कहा हो कि भगवान ऐसे तरफदारोंसे बचावे । अच्छा साहब ! आप जो कुछ कहते हैं सो तो होता है, पर यदि आपके इन शब्दोंके आगे एक-एक 'ता' बिठा दी जाय तब तो आपकी बुद्धिमानी एक दो वर्षके बच्चसे भी बढ़ जायगी। अनरीतिता, अनरसता, अनहोनीता, अनामलता, अनमोलता,---इसी प्रकार और भो ताताताकी कितनी अच्छी शोभा होगी। तब यह शब्द हिन्दी व्याकरणसे सिद्ध होंगे कि नहीं? क्योंकि द्विवेदीजी “अनस्थिर" ही नहीं “अनस्थिरता" भी लिखते हैं। आप बिना बुलाये सहनक लेकर दौड़े तो हैं, पर इतना तो मालूम कर लीजिये कि द्विवेदीजी आपकी बातको मानते हैं कि नहीं। आपसे तो अग्निहोत्रीजी अच्छे हैं, जो अपने लेखमें "अनस्थिरता” को सीधी तरहसे कई जगह “अस्थिरता” लिम्व गये हैं। आत्मारामको उन्होंने खूब डांटा हैं, पर आपकी भांति न्याय और सत्यको नहीं छोड़ा। इससे आत्माराम उनका धन्यवाद करके आजकी ट-टं समान करता है। आत्माराम -भारतमित्र सन् १६०६ ई० । [ ४८ .