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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५४८

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हिन्दीमें पालोचना कहना चाहते हैं। हम अफसोस करते हैं कि आत्मारामके लेखोंको द्विवेदीजीने भाषा और साहित्यकी दृष्टि से नहीं पढ़ा,-हिन्दीमें एक उच्च श्रेणीका सर्वाङ्गसुन्दर व्याकरण बनानेकी दृष्टि से नहीं पढ़ा । उनको पढ़ते समय आपको ६ साल पहलेकी नेकनीयतीका खयाल तो आया, पर उस लेखमें क्या लिखा है, इसका जरा भी खयाल न आया। द्विवेदीजीके इस विचारसे उनके भक्त और साथियोंके विचार भी उन्हींकी पैरवी करने लगे और सब मिलकर यह कहने लगे कि लेख द्वेषसे लिखा गया है, द्विवेदीजीकी भूलं पुरानी दुश्मनी निकालनेके लिये दिखाई गई हैं । आपके असली उद्देश्यको धूल उड़ाकर छिपाया जाता है। विनय यह है कि द्विवेदीजीका असली उद्देश्य क्या था ? दो-चार बार आपने और आपके मित्रोंने लिखा है कि आपका उद्देश्य हिन्दीमें एक सर्वाङ्ग सुन्दर व्याकरणकी जरूरत दिखाना है। बहुत ठीक है । आत्मारामने यह कहाँ, कहा है कि ऐसा व्याकरण न बनना चाहिये ? हिन्दी तो क्या अंगरेजीमें भी यदि कोई सर्वाङ्ग सुन्दर नया व्याकरण बनावे, तो क्या कोई मना करता है ? सब भाषाओं में व्याकरण पर व्याकरण बनते चले आते हैं, कोई रोकता तो नहीं। ___ क्या द्विवेदीजीको आत्मारामने व्याकरण बनानेसे रोक दिया है ? यदि नहीं, तो आपके उद्देश्यको उन्होंने धूलमें छिपानेकी क्या चेष्टा की ? आत्मारामने दिखाया है कि जिन बातोंको लेकर द्विवेदीजी व्याकरणकी जरूरत साबित करने आये हैं, उनसे व्याकरणकी जरूरत तो कुछ नहीं साबित हाती। हां, कुछ नये-पुराने लेखकोंकी हजो उनके लेखसे होती है, चाहे उन्होंने जान बूझकर की हो, चाहे बेजाने। साथही यह भी दिखाया कि जो भूलें पुराने लेखकोंके लेखोंमें वह दिखाते हैं, उनसे व्याकरणका कुछ सम्बन्ध नहीं है। बकरीको यदि कोई 'वकरी' लिखे, तो व्याकरण इस दोषको कैसे दूर करेगा ? कहां 'ब' लिखना चाहिये,