गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा खुशनवीस थे। उनके बेटे मुंशी किशनचन्दजीका सम्बन्ध टौंकके नवाब अमीरग्बांके बख्शी दौलतगयजीकी कन्यासे हुआ था। इससे वह भूपाल छोड़कर मिगेजमें आबसे थे, जो भूपालसे १८ कोस पर नवाब अमीर- खांकी अमलदारीमें था। वहीं मुंशी देवीप्रसादके पिता मुंशी नत्थनलाल- जीका जन्म भादों बदी संवत १८७६ को हुआ। उसी माल अमीरखांने अङ्गरेजोंसे मन्धि होजाने पर टोंकमें रहना स्वीकार किया। इससे देवी- प्रमादजीके दादा मकुटुम्ब टोंकमें आबसे । जब आपके पिता लिम्ब पढ़- कर होशियार हुए, तो वह अमीरखांके छोटे बेटे माहबजादे अबदुलकरी- मग्यांकी मरकारमें नौकर होकर मंवत १६०० विक्रमाब्दमें उनके साथ अजमेर चले आये। क्योंकि माहबजादेकी उनके बड़े भाई नवाब वजीम- होलासे नहीं बनती थी. इमसे अंगरेजोंने उनको अजमेग्में रहनेकी आज्ञा दी। मुंशी देवीप्रमादका जन्म माघ मुदी १४ संवत १६०४ को जयपुरमें नानाके घर हुआ। नाना हकीम शंकरलाल जयपुर राज्यके चौकीनवीस भैया हीरालालजीके पुत्र थे । देवीप्रमादजीने फारसी, हिन्दी अपने पिता- से पढ़ी और नौकरी भी टौंकहीकी सरकारमें संवत १९२० से संवत् १९३४ तक की। इस बीचमें उनका रहना कभी अजमेरमें और कभी टौंकमें हुआ। क्योंकि उक्त माहबजादेके पुत्र, पिनाके बाद कभी अजमेग्में और कभी टोंकमें रहने लगे थे । मुमलमानी गज्य होजानेसे टौंकमें हिन्दुओंपर बहुत अत्याचार होने लगा। इमसे संवत १६३५ के आरम्भमें मुंशी देवीप्रमादजीकी नौकरीही नहीं छूटी, वरञ्च उन्हें टौंक छोड़देनेका भी हुक्म हुआ। मुंशीजीने अज- मेरमें आकर कोहेनूर आदि अखबारों में उन अत्याचारोंकी बात लिखनी
- ढंढारदेश और हाडौती (कोटाबंदी) में कायस्थोंको 'भैयाजी' कहते हैं और
मारवाड़-मेवाड़में चोली'। [ ३८ ]