पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुप्त-निबन्धावली भालोचना-प्रत्यालोचना ( हमारे समालोचक शुक्राचार्यके आत्मरूप ) को देखिये। आपको पण्डितजीने बहुत दिन तक राम राम रटाया, पर आपकी रायमें हमारा लेख बिलकुल ही कूड़ा-कर्कट है xxx खैर, इतनी ही हुई कि समालोचना समरके ऐसे नेपोलियन समा- लोचकोंके गुरुदेवने हमारे लेखको वैसा नहीं समझा।" “अपने पहले लेखमें भाषाको नश्वरताका जिकर करते समय हमने संसारकी नश्वरताका नाम ले लिया, इसपर वाजिदअलीशाहके मकतबके एक जुबादाको गश आ गया।" "और तो जो लोग ज्ञानलवदुर्विदग्ध हैं, ईर्षा-द्वेषस जिनका जी जल रहा है, उनको बृहस्पतिके बापकी भी बातोंमें पूर्वापर विरोध और संदिग्ध भाव देख पड़ेगा ।" ___ "उत्तर समालोचनाओंका दिया जाता है, प्रलापोंका नहीं। जिसे जुबांदानी, कवायददानी और जुबांदानीकी मोहबतसे मिले हुए ज्ञानी- पनका त्रिदोष ज्वर चढ़ा हुआ है, उसकी कल्पनाओंका उत्तर ही क्या ? कुत्सापूर्ण-निस्सार वर्रानका भी क्या कोई उत्तर होता है ?" "इसी तरह महाप्रलय तक चले जाइये और फिर वहांसे विपल, पल और दण्डोंसे शुरू करके महाप्रलय तक तेलीके बैल की तरह अनवरत चक्कर लगाया कोजिये। समालोचक-शिरोमणे । आपने जिस घरमें अपनी आत्माका डेरा डाला है, उसकी पहले खबर लीजिये, तब दूसरों को जुबांदानीका सबक सिखाइये।" सभ्यता 'गवर्नमेंटको चाहिये कि इस 'को-के-की' के मर्जके मरीजको बस्तीसे हटाकर दूर किसी झोपड़ेमें सेग्रीगेट करदे, नहीं तो सारी (इसे आप चाहे तो वाजिदअलीशाही सुथना समझ सकते हैं) दुनियाँमें इसी बीमारीके फैलजानेका बड़ा डर है।" [ ५३६ ]