जातीय राष्ट्रिय-भावना सर सैयदका बुढ़ापा बहुत जीचुके बूढ़े बाबा चलिये मौत बुलाती है, छोड़ सोच मौतसे मिलो जो सबका सोच मिटाती है। गोर भी कहती है रहते हमको किस लिये भुलाये हो, यों जीने पर मरते हो क्या लोहेका सिर लाये हो । बहुत नाम पाया बाबाजी अब तुम इतना काम करो, जो कुछ नाम कमा डाला है उसको मत बदनाम करो। गढ़ा फाड़के मुँह कहता है अन्त मुझीमें आना है, अच्छी भाँति सोचलो जीमें पिछला यही ठिकाना है । स्वर्ग नर्क है बात दूसरी मानो चाहे मत मानो, पर तुम मेरे मुंहमें होगे इसको निश्चयही जानो। उस दुनियामें कोई नहिं कह सकता क्या लेखा होगा, तो भी बाप और दादोंको गड़ते तो देखा होगा । इससे जीमें निश्चय करलो मरना है फिर गड़ना है, मट्टीमें मिल जाना है और गोरमें पड़कर सड़ना है। सभी हड्डियां गले सड़ेगी कोई न पहचानेगा फिर, यह खोपड़ी किसी दुखियाकी पड़ी है वा है सरका सिर ।
- पश्चिमोत्तरप्रदेशके उस समयके छोटेलाल कालविन साहबके इण्डियन नेशनल
कांग्रेससे बिरोध करने पर सर सैयद अहमदखाने भी कांग्रेससे विरोध किया था। उसी मोकमें सैयद साहब हिन्दुओंको भी गाली दे बैठे थे। उनके कांग्रेस-विरोधी लेखों और मन्तव्यों पर यह कविता लिखी गई थी। [ ६२१ ]