पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/६६

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हरबर्ट स्पेन्सर उसने कहा कि स्पेन्मरके मरनेसे पहले मेरी लिखी हुई यह वानं प्रकाशित न हों। वह स्पेन्मरका बड़ा मित्र था। उसके जीमें उसका बड़ा आदर था। वह जानता था, कि ऐसे अच्छे मस्तिष्क और तेज बुद्धिका आदमी दुनियाँमें दुर्लभ है। उसका परिचय बहुत दिनसे स्पेन्सरके माथ था, पर साक्षात भंट कभी न हुई थी। मन १८८६ ई० में वह स्पेन्मरसे उसके मकानपर मिलने गया। म्पेन्मर उस समय क्वीन्मगार्डन बसवाटर नामके स्थानमें रहता था । ग्रान्टने जाकर उस मुहल्लेमें घर घर पूछना आरम्भ किया कि यहाँ म्पेन्सर साहब रहते हैं ? हर जगह यही उत्तर मिला कि यह नाम तक हमने नहीं सुना। नब पहरेवालसे पूछा। उसने कहा, नहीं साहब ! इस नामका आदमी यहां नहीं रहता, आप पता भूले हैं। यह बात सुनकर ग्रान्टने मनमें कहा—“ हाय ! इंगलैंडके सिवा पृथिवीके किस देशमें ऐसी मूर्खता हो सकती है ? इतना बड़ा विद्वान यहाँ वोसे रहता है और इस मुहल्लंका एक आदमी भी उसका नाम नहीं जानता ? कितना अन्धेर है !" ___ ग्रान्टने स्पेन्सरको कमा देखा उसके विषयमें वह कहता है- "स्पेन्सरको देखकर कभी खयाल नहीं हो सकता, कि वह इतना बड़ा पण्डित है ! पहले उसे देखनेसे यही विदित होता, कि वह कोई मामूली मुन्शी है । पर उससे बात करनेसे जान पड़ता है कि उसके मनका भाव मुखसे प्रकाशित नहीं होसकता। कीन्स गार्डनके एक बोर्डिंग हाउसमें स्पेन्सर बीस साल तक बराबर रहा। पर वहाँ भोजनके समयके सिवा कोई उसे देख न पाता था। बेसवाटर में एक दूधकी दुकान थी, नीचे दूध बिका करता था, ऊपर एक छोटासा कमरा था, वहाँ बैठकर वह दिन-रात दर्शनकी आलोचना करता था। पुस्तकोंके ढेर में उसका चित्त घुसा रहता था। उसका जीवन एक योगीकासा था। उसका मन [ ४९ ]