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हंसी-दिल्लगी
बहुत बहकी बहकी न वात करो,
न मायेसे तुम आप अपने डरो।
जरा मुंह पे पानीके छींट लगाव,
यह सब रातभरकी खुमारी मिटाव ।
तुम्हारी ही है हिन्दमें सबको चाह,
तुम्हारे ही हाथों है सबका निबाह ।
तुम्हारा ही सब आज भरते हैं दम ;
यह सच है, तुम्हारे ही सिरकी कमम ।
तुम्हारी ही खातिर हैं छत्तीम भोग,
कि लट्ट हैं तुम पे जमानेके लोग ।
जो हैं चाहते उन पे रीझो रिझाव,
कोई कुछ जो बैंडी कहे मौ सुनाव ।
में शाहोंकी गोदीकी पाली हुई,
मेरी हाय यों पायमालो हुई !
निकाले जुबां फिरती हूं बावली,
खुदाया मैं दिल्लीकी थी लाडली ।
अदाय बलाकी सितमका जमाल,
वह सजधज कयामत वह आफतकी चाल |
मेरे इशकका लोग भरते थे दम,
नहीं झूठ कहती खुदाकी कसम ।
यह आफत लड़कपनमें आनेको थी,
जवानी अभी सिर उठानेको थी।
निकाले थे कुछ-कुछ अभी हाथ पांव,
चमक फैलती जाती है गांव-गांव ।
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