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हंसी-दिल्लगी
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अबला विलाप
(१)
नारि मात तुम नारि हम, बसत तुम्हारे राज,
नारि राज महं नारिकी हाय जात है लाज ।
हाय जात है लाज दुहाई मातु दुहाई,
.. अबला पीड़न हेत बढ़े चहुँदिस अन्याई ।
राछस सम व्यवहार करत चहुँदिसत धावे,
मन भावे सो करहिं पकरि अबलहिं जो पावें ।
तुम नारी, नारीनके मनकी जानत पीर,
डूबत नवका लाजकी केहि विधि राखें धीर ?
केहि विधि राखें धीर लाजको डूबत बेरो,
चहुँदिस हमरे भाग माहिं लखि परत अन्धेरो।
अन्यायी अन्याय करें अरु दण्ड न पावें,
अबला लाज गंवाय प्राणहू साथ गंवावें।
ब्रह्मदेशकी नारि सब रोवत भरि भरि नैन,
बंगदेसकी नारिके चित महं कबहु न चैन ।
चित महं कबहु न चैन बेतसी कांपैं थर थर,
ब्रह्मदेशकी नारि मरत नित गोरनके डर ।
गोरन, मा! सत लियो प्रान नारीको खोयो,
हाकिम अरु जूरीन न्यायको नाम डबोयो ।।
-भारतमित्र, १२ जून १८९९ ई.
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