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त्रिया- चारित्र
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ने पूछा- कहाँ जाओगे? मगनदास ने जवाब दिया कि जाना तो था बहुत दूर, मगर यहीं रात हो गयी। यहाँ कहीं ठहरने का ठिकाना मिल जायगा?

मालिन-वले जाओ सेठ जी के धर्मशाले में, बड़े आराम की जगह है।

भगनदास-~-धर्मशाले में तो मुझे ठहरने का कभी संयोग नहीं हुआ। कोई हर्ज न हो तो यहीं पड़ रहूँ। यहाँ कोई रात को रहता है ?

मालिन-भाई, मैं यहाँ ठहरने को न कहूँगी। यह मिली हुई बाई जी की बैठक है। झरोखे में बैठकर सैर किया करती हैं। कहीं देख-भाल लें तो मेरे सिर में एक बाल भी न रहे।

मगनदास-बाई जी कौन?

मालिन--यही सेठ जी की बेटी। इन्दिरा बाई।

मगनदास---यह गजरे उन्हीं के लिए बना रही हो क्या?

मालिन---हाँ, और सेठ जी के यहाँ है ही कौन ? फूलों के गहने बहुत पसन्द करती हैं।

मगनदास---शौक़ीन औरत मालूम होती हैं ?

मालिन-~-भाई, यही तो बड़े आदमियों की बातें हैं। वह शौक न करें तो हमारा- तुम्हारा निबाह कैसे हो। और धन है किसलिए। अकेली जान पर दस लौंडियाँ हैं। सुना करती थी कि भागवान आदमी का हल भूत जोतता है, वह आँखों देखा। आपही आपपंखा चलने लगे। आप ही आप सारे घर में दिन का-सा उजाला हो जाय। तुम झूठ समझते होगे, मगर मैं आँखों देखी बात कहती हूँ।

उस गर्व की चेतना के साथ जो किसी नादान आदमी के सामने अपनी जानकारी के बयान करने में होता है, बूढ़ी मालिन अपनी सर्वज्ञता का प्रदर्शन करने लगी। मगनदास ने उकसाया--होगा भाई, बड़े आदमी की बातें निराली होती हैं । लक्ष्मी के बस में सब कुछ है। मंगर अकेली जान पर दस लौंडियाँ ? समझ में नहीं आता।

मालिन ने बुढ़ापे के चिड़चिड़ेपन से जवाब दिया तुम्हारी समझ मोटी हो तो कोई क्या करे! कोई पान लगाती है, कोई पंखा झलती है, कोई कपड़े पहनाती है, दो हजार रुपये में तो सेजगाड़ी आयी थी, चाहो तो मुँह देख लो, उस पर हवा खाने जाती हैं। एक बंगालिन गाना-बजाना सिखाती है, मेम पढ़ाने आती है, शास्त्री जी संस्कृत पढ़ाते हैं, कागद पर ऐसी मूरत बनाती हैं कि अब बोली और अब बोली। दिल की रानी है, बेचारी के भाग फूट गये। दिल्ली के सेठ लगनदास के गोद लिये हुए लड़के से ब्याह हुआ था। मगर राम जी की लीला, सत्तर बरस के