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त्रिया- चरित्र
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यह शान ! मालिन को इत्मीनान दिलाया। उसके पास अगर दौलत होती तो उसे मालामाल कर देता। सेठ मक्खनलाल की बेटी को भी मालूम हो जाता कि रोजी की कुंजी उसी के हाथ में नहीं है। बोला--तुम फिक्र न करो, मेरे घर में आराम से रहो। अकेले मेरा जी भी नहीं लगता। सच कहो तो मुझे तुम्हारी तरह एक औरत की तलाश थी, अच्छा हुआ तुम आ गयीं।

मालिन ने आँचल फैलाकर असीस दिया-बेटा तुम जुग जुग जियो, बड़ी उमिर हो, यहाँ कोई घर मिले तो मुझे दिलवा दो। मैं यहाँ रहूँगी तो मेरी भतीजी कहाँ जायगी। वह बेचारी शहर में किसके आसरे रहेगी।

मगनदास के खून में जोश आया। उसके स्वाभिमान को चोट लगी। उन पर यह आफ़त मेरी लायी हुई है। उनकी इस आवारागर्दी का जिम्मेदार मैं हूँ। बोला -कोई हर्ज न हो तो उसे भी यहीं ले आओ। मैं दिन को यहाँ बहुत कम रहता हूँ। रात को बाहर चारपाई डालकर पड़ रहा करूंगा। मेरी वजह से तुम लोगों को कोई तकलीफ़ न होगी। यहाँ दूसरा मकान मिलना मुश्किल है। यही झोपड़ा बड़ी मुश्किलों से मिला है। यह अन्धेरनगरी है। जब तुम्हारा सुभीता कहीं लग जाय तो चली जाना! मगनदास को क्या मालूम था कि हज़रत इश्क उसकी जुबान पर बैठे हुए उससे यह बातें कहला रहे हैं। क्या यह ठीक है कि इश्क पहले माशक के दिल में पैदा होता है ?

नागपुर इस गाँव से बीस मील की दूरी पर था। चम्पा उसी दिन चली गयी और तीसरे दिन रम्भा के साथ लौट आयी। यह उसकी भतीजी का नाम था। उसके आने से झोपड़े में जान-सी पड़ गयी। मगनदास के दिमाग़ में मालिन की लड़की की जो तस्वीर थी उसका रम्भा से कोई मेल न था। वह सौन्दर्य नाम की चीज़ का अनुभवी जौहरी था मगर ऐसी सूरत जिस पर जवानी की ऐसी मस्ती और दिल का चैन छीन लेनेवाला ऐसा आकर्षण हो उसने पहले कभी न देखा था। उसकी जवानी का चाँद अपनी सुनहरी और गम्भीर शान के साथ चमक रहा था। सुबह का वक्त था। मगनदास दरवाजे पर पड़ा ठण्डी-ठण्डी हवा का मज़ा उठा रहा था। रम्भा सिर पर घड़ा रक्खे पानी भरने को निकली। मगनदास ने उसे देखा और एक लम्बी साँस खींचकर उठ बैठा। चेहरा-मोहरा बहुत ही मोहक । ताजे फूल की तरह खिला हुआ चेहरा, आँखों में गम्भीर सरलता। मगनदास को उसने भी देखा। चेहरे पर लाज की लाली दौड़ गयी। प्रेम ने पहला वार किया।