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गैरत की कटार
२०३
 

यक़ीन मानो, अगर मुझे चन्द आखिरी बातें कहने का मौका न मिलता तो शायद मेरी रूह को दोज़ख में भी यही आरजू रहती। मौत की सजा से पहले अपने घर- वालों से आखिरी मुलाकात की इजाजत होती है। क्या तुम मेरे लिए इतनी रियायत के भी रवादार न थे? माना कि अब तुम मेरे कोई नहीं हो मगर किसी वक्त थे और तुम चाहे अपने दिल में समझते हो कि मैं सब कुछ भूल गयी लेकिन मैं मुहब्बत को इतनी भूल जानेवाली नहीं हूँ। अपने ही दिल से फैसला करो। तुम मेरी बेवफ़ाइयाँ चाहे भूल जाओ लेकिन मेरी मुहब्बत की दिल तोड़नेवाली यादगारें नहीं मिटा सकते। मेरी आखिरी बातें सुन लो और इस नापाक ज़िन्दगी का किस्सा पाक करो। मैं साफ़-साफ़ कहती हूँ, इस आखिरी वक्त में क्यों डरूँ। मेरी जो कुछ दुर्गत हुई है उसके ज़िम्मेदार तुम हो। नाराज न हो। अगर तुम्हारा खयाल है कि मैं यहाँ फूलों की सेज पर सोती हूँ तो वह गलत है। मैंने औरत की शर्म खोकर उसकी क़द्र जानी है। मैं हसीन हूँ, नाजुक हूँ, दुनिया की नेमतें मेरे लिए हाज़िर हैं, नासिर मेरी इच्छा का गुलाम है लेकिन मेरे दिल से यह खयाल कभी दूर नहीं होता कि वह सिर्फ मेरे हुस्न और अदा का बंदा है। मेरी इज्जत उसके दिल में कभी हो भी नहीं सकती। क्या तुम जानते हो कि यहाँ खवासों और दूसरी बीवियों के मतलब भरे इशारे मेरे खून और जिगर को नहीं जलाते। ओफ्, मैंने अस्मत खोकर अस्मत की क़द्र जानी है लेकिन मैं कह चुकी हूँ और फिर कहती हूँ, कि इसके तुम ज़िम्मेदार हो।

हैदर ने पहलू बदलकर पूछा-क्योंकर? नईमा ने उसी अन्दाज़ से जवाब दिया-तुमने मुझे बीवी बनाकर नहीं,माशूक बनाकर रक्खा। तुमने मुझे नाजवरदारियों का आदी बनाया लेकिन फ़र्ज का सबक़ नहीं पढ़ाया। तुमने कभी न अपनी बातों से, न कामों से मुझे यह खयाल करने का मौका दिया कि इस मुहब्बत की बुनियाद फ़र्ज़ पर है। तुमने मुझे देशा हुस्न और मस्तियों के तिलिस्म में फंसा रक्खा और मुझे ख्वाहिशों का गुलाम बना दिया। किसी किश्ती पर अगर फ़र्ज का मल्लाह न हो तो फिर उसे दरिया में डूब जाने के सिवा और कोई चारा नहीं। लेकिन अब बातों से क्या हासिल, अब तो तुम्हारी गैरत की कटार मेरे खून की प्यासी है और यह लो मेरा सिर उसके सामने झुका हुआ है। हाँ, मेरी एक आखिरी तमन्ना है, अगर तुम्हारी इजाजत पाऊँतो कहूँ।

यह कहते-कहते नईमा की आँखों में आंसुओं की बाढ़ आ गयी और हैदर की औरत उसके सामने न ठहर सकी। उदास स्वर में बोला-क्या कहती हो?