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२१० गुप्त धन

समझनेवाला, दूरदर्शी आदमी था। आखिर मुझे उसका बिन-पैसों का गुलाम बनना था।

बरसात में सरयू नदी इस जोर-शोर से चढ़ी कि हजारों गाँव बरबाद हो गये, बड़े-बड़े तनावर दरख्त तिनकों की तरह वहते चले जाते थे। चारपाइयों पर सोते हुए बच्चे और औरतें, खूटे पर बँधे हुए गाय और बैल उसकी गरजती हुई लहरों में समा गये। खेतों में नाव चलती थी।

शहर में उड़ती हुई खबरें पहुँची। सहायता के प्रस्ताव पास हुए। सैकड़ों ने सहानुभूति और शोक के अरजेण्ट तार जिले के बड़े साहब की सेवा में भेजे। टाउनहाल में क़ौमी हमदर्दी की पुरशोर सदाएँ उठी और उस हंगामे में बाढ़ पीड़ितों की दर्दभरी पुकारें दब गयीं।

सरकार के कानों में फरियाद पहुंची। एक जाँच कमीशन तैनात किया गया।जमीन्दारों को हुक्म हुआ कि वे कमीशन के सामने अपने नुकसानों को विस्तार से बतायें और उसके सबूत दें। शिवरामपुर के महाराजा साहब को इस कमीशन का सभापति बनाया गया। जमीन्दारों में रेल-पेल शुरू हुई। नसीब जागे। नुकसान के तखमीने का फैसला करने में काव्य-बुद्धि से काम लेना पड़ा। सुबह से शाम तक कमीशन के सामने एक जमघट रहता। आनरेबुल महाराजा साहब को साँस लेने की फुरसत न थी। दलील और शहादत का काम बात बनाने और खुशामद से लिया जाता था। महीनों यही कैफियत रही। नदी किनारे के सभी जमीन्दार अपने नुकसान की फरियादें पेश कर गये, अगर कमीशन से किसी को कोई फायदा नहीं पहुँचा तो वह कुंअर सज्जन सिंह थे। उनके सारे मौजे सरयू के किनारे पर थे और सब तबाह हो गये थे, गढ़ी की दीवारें भी उसके हमलों से न बच सकी थीं, मगर उनकी ज़वान ने खुशामद करना सीखा ही न था और यहाँ उसके वगैर रसाई मुश्किल थी। चुनांचे वह कमीशन के सामने न आ सके। मियाद खतम होने पर कमीशन ने रिपोर्ट पेश की, बाढ़ में डूबे हुए इलाकों में लगान की आम माफी हो गयी। रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ सज्जन सिंह वह भाग्यशाली जमीन्दार थे, जिनका कोई नुकसान नहीं हुआ था। कुंअर साहब ने रिपोर्ट सुनी, मगर माथे पर बल न आया। उनके असामी गढ़ी के सहन में जमा थे, यह हुक्म सुना तो रोने-धोने लगे। तब कुंअर साब उठे और बुलन्द आवाज़ में बोले-मेरे इलाके में भी माफी है। एक कौड़ी लगान न लिया जाय। मैंने यह वाकया सुना और खुद ब खुद मेरी आँखों से