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गुप्त धत
 

बार उससे मुआमला करता वह हमेशा के लिए उसका खरीदार बन जाता। कर्मचारियों के साथ उसका सिद्धान्त था—काम सख्त और मजदूरी ठीक। उसके ऊँचे व्यक्तित्व का भी स्पष्ट प्रभाव दिखायी पड़ा। करीब-करीब सभी कारखानों का रंग फीका पड़ गया। उसने बहुत ही कम नफे पर कई ठेके ले लिये। मशीन को दम मारने की मोहलत न थी, रात और दिन काम होता था। तीसरा महीना खत्म होते-होते उस कारखाने की शकल ही बदल गयी। हाते में घुसते ही ठेले और गाड़ियों की भीड़ नज़र आती थी। कारखाने में बड़ी चहल-पहल थी—हर आदमी अपने-अपने काम में लगा हुआ। इसके साथ ही प्रबन्ध-कौशल का यह वरदान था कि भद्दी हड़बड़ी और जल्दबाज़ी का कहीं निशान न था।

लाला हरनामदास धीरे-धीरे ठीक होने लगे। एक महीने के बाद बह रुक-रुककर कुछ बोलने लगे! डाक्टर की सख्त ताकीद थी कि उन्हें पूरी शान्ति की स्थिति में रखा जाय मगर जब से उनकी जबान खुली उन्हें एक दम को भी चैन न था। देवकी से कहा करते—सारा कारबार मिट्टी में मिला जाता है। यह लड़का नहीं मालूम क्या कर रहा है, सारा काम अपने हाथ में ले रखा है। मैंने ताकीद कर दी थी कि दीनानाथ को मैनेजर बनाना लेकिन उसने जरा भी परवाह न की। मेरी सारी उम्र की कमाई बरबाद हुई जाती है ।

देवकी उनको सान्त्वना देती कि आप इन बातों की आशंका न करें। कारबार बहुत खूबी से चल रहा है और खूब नफा हो रहा है। पर वह भी इस मामले को तूल देते हुए डरती थी कि कहीं लकवे का फिर हमला न हो जाय। हूँ-हाँ कहकर टालना चाहती थी। हरिदास ज्यों ही घर में आता, लाला जो उस पर सवालों की बौछार कर देते और जब वह टालकर कोई दूसरा जिक्र छेड़ देता तो बिगड़ जाते और कहते-जालिम, तू जीते जी मेरे गले पर छूरी फेर रहा है। मेरी पूंजी उड़ा रहा है। तुझे क्या मालूम कि मैंने एक-एक कौड़ी किस मशक्कत से जमा की है। तू ने दिल में ठान ली है कि इस बुढ़ापे में मुझे गली-गली ठोकर खिलाये, मुझे कौड़ी-कौड़ी का मुहताज बनाये।

हरिदास फटकार का कोई जवाब न देता क्योंकि बात से बात बढ़ती है। उसकी चुप्पी से लाला साहब को यक़ीन हो जाता कि ज़रूर कारखाना तबाह हो गया।