पृष्ठ:गुप्त धन 1.pdf/६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
विक्रमादित्य का तेगा
५१
 


कर देते हैं। यकायक यह खबर मशहूर हुई कि महाराज इसी बक्त कूच करेंगे। लोग ताज्जुव में आ गये कि महाराज ने क्यों इस अंधेरी रात में सफर करने की ठानी है। इस डर से कि फ़ौज को इसी वक्त कूच करना पड़ेगा चारों तरफ़ खलवली-सी मच गयी। वह खुद थोड़े से आजमाये हुए सरदारों के साथ रवाना हो गये। इसका कारण किसी की समझ में न आया।

जिस तरह बाँध टूट जाने से तालाब का पानी काबू से बाहर होकर जोर-शोर के साथ बह निकलता है, उसी तरह महाराज के जाते ही फ़ौज के अफसर और सिपाही होश-हवास खोकर मस्तियाँ करने लगे।

वृन्दा को विधवा हुए तीन साल गुजरे हैं। उसका पति एक वेफ़िक्र और रंगीन-मिजाज आदमी था। गाने-बजाने से उसे प्रेम था। घर की जो कुछ जमा-जथा थी, वह सरस्वती और उसके पुजारियों के भेंट कर दी। तीन लाख की जायदाद तीन साल के लिए भी काफ़ी न हो सकी मगर उसकी कामना पूरी हो गयी। सरस्वती देवी ने उसे आशीर्वाद दिया और उसने संगीत-कला में ऐसा कमाल पैदा किया कि अच्छे-अच्छे गुनी उसके सामने ज़बान खोलते डरते थे। गाने का उसे जितना शौक़ था, उतनी ही मुहब्बत उसे वृन्दा से थी। उसकी जान अगर गाने में बसती थी तो दिल वृन्दा की मुहब्बत से भरा हुआ था। पहले छेड़छाड़ में और फिर दिलबहलाव के लिए उसने बृन्दा को कुछ गाना सिखाया। यहाँ तक कि उसको भी इस अमृत का स्वाद मिल गया और यद्यपि उसके पति को मरे तीन साल गुज़र गये हैं और उसने सांसारिक सुखों को अंतिम नमस्कार कर लिया है यहाँ तक कि किसी ने उसके गुलाब के-से होठों पर मुस्कराहट की झलक नहीं देखी मगर गाने की तरफ़ अभी तक उसकी तबीयत झुकी हुई थी। उसका मन जब कभी बीते हुए दिनों की याद से उदास होता है तो वह कुछ गाकर जी बहला लेती है। लेकिन गाने में उसका उद्देश्य इन्द्रिय का आनन्द नहीं होता, बल्कि जब वह कोई सुन्दर राग अलापने लगती है तो खयाल में अपने पति को खुशी से मुस्कराते हुए देखती है। वही काल्पनिक चित्र उसके गाने की प्रशंसा करता हुआ दिखायी देता है। गाने में उसका लक्ष्य अपने स्वर्गीय पति की स्मृति को ताज़ा करना है। गाना उसके नजदीक पतिव्रत धर्म का निबाह है।

तीन' पहर रात जा चुकी है, आसमान पर चाँद की रोशनी मन्द हो चुकी है,