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पृष्ठ:गोदान.pdf/१५१

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गोदान : 151
 


तालियां बजीं। हाल हिल उठा। रायसाहब ने गद्गद होकर कहा मेहता वही कहते हैं, जो इनके दिल में है।

ओंकारनाथ ने टीका की लेकिन बातें सभी पुरानी हैं, सड़ी हुई।

'पुरानी बात भी आत्मबल के साथ कही जाती है, तो नई हो जाती है।'

'जो एक हजार रुपये हर महीने फटकारकर विलास में उड़ाता हो, उसमें आत्मबल जैसी वस्तु नहीं रह सकती। यह केवल पुराने विचार की नारियों और पुरुषों को प्रसन्न करने के ढंग हैं।'

खन्ना ने मालती की ओर देखा-यह क्यों फूली जा रही है? इन्हें तो शरमाना चाहिए।

खुर्शेद ने खन्ना को उकसाया-अब तुम भी एक तकरीर कर डालो खन्ना, नहीं मेहता तुम्हें उखाड़ फेंकेगा। आधा मैदान तो उसने अभी मार लिया है।

खन्ना खिसियाकर बोले-मेरी न कहिए। मैंने ऐसी कितनी चिड़िया फंसाकर छोड़ दी हैं।

रायसाहब ने खुर्शेद की तरफ आंख मारकर कहा-आजकल आप महिला-समाज की तरफ आते-जाते हैं। सच कहना, कितना चंदा दिया?

खन्ना पर झेंप छा गई–ऐसे समाजों को चंदे नहीं दिया करता, जो कला का ढोंग रचकर दुराचार फैलाते हैं।

मेहता का भाषण जारी था-

'पुरुष कहता है, जितने दार्शनिक और वैज्ञानिक आविष्कारक हुए हैं, वह सब पुरुष थे। जितने बड़ेबड़े महात्मा हुए हैं, वह सब पुरुष थे। सभी योद्धा, सभी राजनीति के आचार्य, बड़े-बड़े सब कुछ पुरुष थे, लेकिन इन बड़ों-बड़ों के समूहों ने मिलकर किया क्या? महात्माओं और धर्मप्रवर्तकों ने संसार में रक्त की नदियां बहाने और वैमनस्य की आग भड़काने के सिवा और क्या किया, योद्धाओं ने भाइयों की गर्दनें काटने के सिवा और क्या यादगार छोड़ी, राजनीतिज्ञों की निशानी अब केवल लुप्त साम्राज्यों के खंडहर रह गए हैं, और आविष्कारकों ने मनुष्य को मशीन का गुलाम बना देने के सिवा और क्या समस्या हल कर दी? पुरुषों को इस रची हुई संस्कृति में शांति कहां है? सहयोग कहां है ?'

ओंकारनाथ उठकर जाने को हुए-विलासियों के मुंह से बड़ी-बड़ी बातें सुनकर मेरी देह भस्म हो जाती है।

खुर्शेद ने उनका हाथ पकड़कर बैठाया-आप भी संपादकजी निरे पोंगा ही रहे। अजी यह दुनिया है, जिसके जी में जो आता है, बकता है। कुछ लोग सुनते हैं और तालियां बजाते है। चलिए, किस्सा खत्म। ऐसे-ऐसे बेशुमार मेहते आयंगे और चले जायंगे और दुनिया अपनी रफ्तार से चलती रहेगी। बिगड़ने की कौन-सी बात है?

'असत्य सुनकर मुझसे सहा नहीं जाता।'

रायसाहब ने उन्हें और चढ़ाया-कुलटा के मुंह से सतियों की-सी बात सुनकर किसका जी न जलेगा।

ओंकारनाथ फिर बैठ गएमेहता का भाषण जारी था-

'मैं आपसे पूछता हूं, क्या बाज को चिड़ियों का शिकार करते देखकर हंस को यह शोभा देगा कि वह मानसरोवर की आनंदमयी शांति को छोड़कर चिड़ियों का शिकार करने लगे? और