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152 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


अगर वह शिकारी बन जाय, तो आप उसे बधाई देंगी? इंस के पास उतनी तेज चोंच नहीं है, उतने तेज चंगुल नहीं हैं, उतनी तेज आंखें नहीं हैं, उतने तेज पंख नहीं हैं और उतनी तेज रक्त की प्यास नहीं है। उन अस्त्रों का संचय करने में उसे सदियां लग जायंगी, फिर भी वह बाज बन सकेगा या नहीं, इसमें संदेह है, मगर बाज बने या न बने, वह हंस न रहेगा-वह हंस जो मोती चुगता है।'

खुर्शेद ने टीका की-यह तो शायरों की-सी दलीलें हैं। मादा बाज भी उसी तरह शिकार करती है, जैसे, नर बाज।

ओंकारनाथ प्रसन्न हो गए-उस पर आप फिलॉसफर बनते हैं, इसी तर्क के बल पर।

खन्ना ने दिल का गुबार निकाला-फिलॉसफर नहीं फिलॉसफर की दुम हैं। फिलॉसफर वह है जा....

ओंकारनाथ ने बात पूरी की-जो सत्य से जौं-भर भी न टले।

खन्ना को यह समस्या-पूर्ति नहीं रुची-मैं सत्य-वत्य नहीं जानता: मैं तो फिलॉसफर उसे कहता हूं, जो फिलॉसफर हो सच्चा।

खुर्शेद ने दाद दी-फिलॉसफर की आपने कितनी सच्ची तारीफ की है। वाह, सुभानल्ला। फिलॉसफर वह है, जो फिलॉसफर हो। क्यों न हो।

मेहता आगे चले-मैं नहीं कहता, देवियों को विद्या की जरूरत नहीं है। है और पुरुषों से अधिक। मैं नहीं कहता, देवियों को शक्ति की जरूरत नहीं है। है और पुरुषों से अधिक, लेकिन वह विद्या और वह शक्ति नहीं, जिससे पुरुष ने संसार को हिंसा क्षेत्र बना डाला है। अगर वही विद्या और वही शक्ति आप भी ले लेंगी, तो संसार मरुस्थल हो जायगा। आपकी विद्या और आपका अधिकार हिंसा और विध्वंस में नहीं, सृष्टि और पालन में है। क्या आप समझती हैं, वोटों से मानव-जाति का उद्धार होगा, या दफ्तरों में और अदालतों में जबान और कलम चलाने से? इन नकली, अप्राकृतिक, विनाशकारी अधिकारों के लिए आप वह अधिकार छोड़ देना चाहती हैं, जो आपको प्रकृति ने दिए हैं?

सरोज अब तक बड़ी बहन के अदब से जब्त किए बैठी थी। अब न रहा गया। फुफकार उठी-हमें वोट चाहिए, पुरुषों के बराबर।

और कई युवतियों ने हांक लगाई-वोट। वोट ।

ओंकारनाथ ने खड़े होकर ऊंचे स्वर से कहा-नारी-जाति के विरोधियों की पगड़ी नीची हो।

मालती ने मेज पर हाथ पटककर कहा-शांत रहो, जो लोग पक्ष या विपक्ष में कुछ कहना चाहेंगे, उन्हें पूरा अवसर दिया जायगा।

मेहता बोले-वोट नए युग का मायाजाल है, मरीचिका है, कलंक है, धोखा है, उसके चक्कर में पड़कर आप न इधर की होंगी, न उधर की। कौन कहता है कि आपका क्षेत्र संकुचित है और उसमें आपको अभिव्यक्ति का अवकाश नहीं मिलता। हम सभी पहले मनुष्य हैं, पीछे और कुछ। हमारा जीवन हमारा घर है। वहीं हमारी सृष्टि होती है, वहीं हमारा पालन होता है, वहीं जीवन के सारे व्यापार होते हैं। अगर वह क्षेत्र परिमित है, तो अपरिमित कौन-सा क्षेत्र है? क्या वह संघर्ष, जहां संगठित अपहरण हैं? जिस कारखाने में मनुष्य और उसका भाग्य बनता है, उसे छोड़कर आप उन कारखानों में जाना चाहती हैं, जहां मनुष्य पीसा जाता है, जहां उसका