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166 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


रहे थे, लेकिन इन लोगों ने हाथ-पांव जोड़े, थूककर चाटा, तब जाके उन्होंने छोड़ा! धनिया का कलेजा शीतल हो गया, गांव में घूम-घूमकर पंचों को लज्जित करती फिरती थी-आदमी न सुने गरीबों की पुकार, भगवान् तो सुनते हैं। लोगों ने सोचा था, इनसे डांड़ लेकर मजे से फुलौड़ियां खायंगे। भगवान् ने ऐसा तमाचा लगाया कि फुलौड़ियां मुंह से निकल पड़ीं। एक-एक के दो-दो भरने पड़े। अब चाटो मेरा मकान लेकर।

मगर बैलों के बिना खेती कैसे हो? गांवों में बोआई शुरू हो गई। कार्तिक के महीने में किसान के बैल मर जायं, तो उसके दोनों हाथ कट जाते हैं। होरी के दोनों हाथ कट गए थे। और सब लोगों के खेतों में हल चल रहे थे। बीज डाले जा रहे थे। कहीं-कहीं गीत की तानें सुनाई देती थीं। होरी के खेत किसी अनाथ अबला के घर की भांति सूने पड़े थे। पुनिया के पास भी गोई थी, सोभा के पास भी गोई थी, मगर उन्हें अपने खेतों की बुआई से कहां फुरसत कि होरी की बुआई करें। होरी दिन-भर इधर-उधर मारा-मारा फिरता था। कहीं इसके खेत में जा बैठता, कहीं उसकी बोआई करा देता। इस तरह कुछ अनाज मिल जाता। धनिया, रूपा, सोना सभी दूसरों की बोआई में लगी रहती थीं। जब तक बुआई रही, पेट की रोटियां मिलती गईं, विशेष कष्ट न हुआ। मानसिक वेदना तो अवश्य होती थी, पर खाने भर को मिल जाता था। रात को नित्य स्त्री-पुरुष में थोड़ी-सी लड़ाई हो जाती थी।

यहां तक कि कातिक का महीना बीत गया और गांव में मजदूरी मिलनी भी कठिन हो गई। अब सारा दारमदार ऊख पर था, जो खेतों में खड़ी थी।

रात का समय था। सर्दी खूब पड़ रही थी। होरी के घर में आज कुछ खाने को न था। दिन को तो थोड़ा-सा भुना हुआ मटर मिल गया था, पर इस वक्त चूल्हा जलने का कोई डौल न था और रूपा भूख के मारे व्याकुल थी और द्वार पर कौड़े के सामने बैठी रो रही थी। घर में जब अनाज का एक दाना भी नहीं है, तो क्या मांगे, क्या कहे!

जब भूख न सही गई तो वह आग मांगने के बहाने पुनिया के घर गई। पुनिया बाजरे की रोटियां और बथुए का साग पका रही थी। सुगंध से रूपा के मुंह में पानी भर आया।

पुनिया ने पूछा-क्या अभी तेरे घर आग नहीं जली, क्या री?

रूपा ने दीनता से कहा-आज तो घर में कुछ था ही नहीं, आग कहां से जलती।

'तो फिर आग काहे को मांगने आई है?'

'दादा तमाखू पिएंगे।'

पुनिया ने उपले की आग उसकी ओर फेंक दी, मगर रूपा ने आग उठाई नहीं और समीप जाकर बोली-तुम्हारी रोटियां महक रही हैं काकी मुझे बाजरे की रोटियां बड़ी अच्छी लगती हैं।

पुनिया ने मुस्कराकर पूछा-खाएगी?

'अम्मां डांटेगी।'

'अम्मां से कौन कहने जायगा?'

रूपा ने पेट-भर रोटियां खाईं और जूठे मुंह भागी हुई घर चली गई।

होरी मन-मारे बैठा था कि पंडित दातादीन ने जाकर पुकारा। होरी की छाती धड़कने लगी। क्या कोई नई विपत्ति आने वाली है? आकर उनके चरण छुए और कौड़े के सामने उनके लिए मांची रख दी।