किसी तरह एक पेड़ के नीचे काटी, सुबह होते ही नोखेराम के पास जा पहुंचे और अपनी फरियाद सुनाई। भोला का गांव भी उन्हीं के इलाके में था और इलाके-भर के मालिक-मुखिया जो कुछ थे, वही थे। नोखेराम को भोला पर तो क्या दया आती, पर उनके साथ एक चटपटी, रंगीली स्त्री देखी तो चटपट आश्रय देने पर राजी हो गए। जहां उनकी गाएं बंधती थीं, वहीं एक कोठरी रहने को दे दी। अपने जानवरों की देख-भाल, सानी-भूसे के लिए उन्हें एकाएक एक जानकार आदमी की जरूरत मालूम होने लगी। भोला को तीन रुपया महीना और सेर-भर रोजाना पर नौकर रख लिया।
नोखेराम नाटे, मोटे, खल्वाट, लम्बी नाक और छोटी-छोटी आंखों वाले सांवले आदमी थे। बड़ा-सा पग्गड़ बांधते, नीचा कुरता पहनते और जाड़ों में लिहाफ ओढ़कर बाहर आते-जाते थे। उन्हें तेल की मालिश कराने में बड़ा आनन्द आता था, इसलिए उनके कपड़े हमेशा मैले, चीकट रहते थे। उनका परिवार बहुत बड़ा था। सात भाई और उनके बाल-बच्चे सभी उन्हीं पर आश्रित थे। उस पर स्वयं उनका लड़का नवें दरजे में अंग्रेजी पढ़ता था और उसका बबुआई ठाठ निभाना कोई आसान काम न था। राय साहब से उन्हें केवल बारह रुपए वेतन मिलता था, मगर खर्च सौ रुपए से कौड़ी कम न था। इसलिए आसामी किसी तरह उनके चंगुल में फंस जाए, तो बिना उसे अच्छी तरह चूसे छोड़ते न थे। पहले छः रुपए वेतन मिलता था, तब असामियों से इतनी नोच-खसोट न करते थे, जब से बारह रुपए हो गये थे, तब से उनकी तृष्णा और भी बढ़ गयी थी, इसलिए राय साहब उनकी तरक्की न करते थे।
गांव में और तो सभी किसी-न-किसी रूप में उनका दवाब मानते थे, यहां तक कि दातादीन और झिंगुरीसिंह भी उनकी खुशामद करते थे, केवल पटेश्वरी उनसे ताल ठोकने को हमेशा तैयार रहते थे। नोखेराम को अगर यह जोम था कि हम ब्राह्मण हैं और कायस्थों को उंगली पर नचाते हैं, तो पटेश्वरी को भी घमंड था कि हम कायस्थ हैं, कलम के बादशाह, इस मैदान में कोई हमसे क्या बाजी ले जाएगा? फिर वह जमींदार के नौकर नहीं, सरकार के नौकर हैं, जिसके राज में सूरज कभी नहीं डूबता। नोखेराम अगर एकादशी को व्रत रखते हैं और पांच ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं तो पटेश्वरी हर पूर्णमासी को सत्यनारायण की कथा सुनेंगे और दस ब्राह्मणों को भोजन कराएंगे। जब से उनका जेठा लड़का सजावल हो गया था, नोखेराम इस ताक में रहते थे कि उनका लड़का किसी तरह दसवां पास कर ले, तो उसे भी कहीं नकल-नवीसी दिला दें। इसलिए हुक्काम के पास फसली सौगातें लेकर बराबर सलामी करते रहते थे। एक और बात में पटेश्वरी उनसे बढ़े हुए थे। लोगों का खयाल था कि वह अपनी विधवा कहारिन को रखे हुए हैं। अब नोखेराम को भी अपनी शान में यह कसर पूरी करने का अवसर मिलता हुआ जान पड़ा।
भोला को ढाढ़स देते हुए बोले-तुम यहाँ आराम से रहो भोला, किसी बात का खटका नहीं। जिस चीज की जरूरत हो, हमसे आकर कहो। तुम्हारी घरवाली है, उसके लिए भी कोई न कोई काम निकल आएगा। बखारों में अनाज रखना, निकालना, पछोरना, फटकना क्या थोड़ा काम है?
भोला ने अरज की-सरकार, एक बार कामता को बुलाकर पूछ लो, क्या बाप के साथ बेटे का यही सलूक होना चाहिए? घर हमने बनवाया, गायें-भैंसें हमने लीं। अब उसने सब कुछ हथिया लिया और हमें निकाल बाहर किया। यह अन्याय नहीं तो क्या है? हमारे मालिक तो