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पृष्ठ:गोदान.pdf/२५६

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256 : प्रेमचंद रचनावली-6
 


चुहिया स्नेह से उसके केश सुलझाती हुई बोली-धीरज धर बेटी, धीरज धर। अभी छन-भर में कष्ट कटा जाता है। तूने भी तो जैसे चुप्पी साध ली थी। इसमें किस बात की लाज। मुझे बता दिया होता, तो मैं मौलवी साहब के पास से ताबीज ला देती। वही मिर्जाजी जो इस हाते में रहते हैं।

इसके बाद झुनिया को कुछ होश न रहा। नौ बजे सुबह उसे होश आया, तो उसने देखा, चुहिया शिशु को लिए बैठी है और वह साफ साड़ी पहने लेटी हुई है। ऐसी कमजोरी थी, मानो देह में रक्त का नाम न हो।

चुहिया रोज सबेरे आकर झुनिया के लिए हरीरा और हलवा पका जाती और दिन में भी कई बार आकर बच्चे को उबटन मल जाती और ऊपर का दूध पिला जाती। आज चौथा दिन था, पर झुनिया के स्तनों में दूध न उतरता था। शिशु रो-रोकर गला फाड़े लेता था, क्योंकि ऊपर का दूध उसे पचता न था। एक छन को भी चुप न होता था। चुहिया अपना स्तन उसके मुंह में देती बच्चा एक क्षण चूसता, पर जब दूध न निकलता, तो फिर चीखने लगता। जब चौथे दिन सांझ तक झुनिया के दूध न उतरा तो चुहिया घबराई। बच्चा सूखता चला जाता था। नखास में एक पेंशनर डाक्टर रहते थे। चुहिया उन्हें ले आई। डाक्टर ने देख-भालकर कहा इसकी देह में खून तो है ही नहीं, दूध कहां से आए? समस्या जटिल हो गई। देह में खून लाने के लिए महीनों पुष्टिकारक दवाएं खानी पड़ेंगी, तब कहीं दूध उतरेगा तब तक तो इस मांस के लोथड़े का ही काम तमाम हो जाएगा।

पहर रात हो गई थी। गोबर ताड़ी पिए ओसारे में पड़ा हुआ था। चुहिया बच्चे को चुप कराने के लिए उसके मुंह में अपनी छाती डाले हुए थी कि सहसा उसे ऐसा मालूम हुआ कि उसकी छाती में दूध आ गया है। प्रसन्न होकर बोली-ले झुनिया, अब तेरा बच्चा जी जाएगा। मेरे दूध आ गया।

झुनिया ने चकित होकर कहा-तुम्हें दूध आ गया?

'नहीं री, सच।'

'मैं तो नहीं पतियाती।'

'देख ले।'

उसने अपना स्तन दबाकर दिखाया। दूध की धार फूट निकली।

झुनिया ने पूछा-तुम्हारी छोटी बिटिया तो आठ साल से कम की नहीं है।

'हां आठवां है, लेकिन मुझे दूध बहुत होता था।'

'इधर तो तुम्हें कोई बाल-बच्चा नहीं हुआ।'

'वही लड़की पेट-पोछनी थी। छाती बिल्कुल सूख गई थी, लेकिन भगवान् की लीला है, और क्या।'

अब से चुहिया चार-पांच बार आकर बच्चे को दूध पिला जाती। बच्चा पैदा तो हुआ था दुर्बल, लेकिन चुहिया का स्वस्थ दूध पीकर गदराया जाता था। एक दिन चुहिया नदी स्नान करने चली गई। बच्चा भूख के मारे छटपटाने लगा। चुहिया दस बजे लौटी, तो झुनिया बच्चे को कंधे से लगाए झुला रही थी और बच्चा रोए जाता था। चुहिया ने बच्चे को उसकी गोद से लेकर दूध पिला देना चाहा, पर झुनिया ने उसे झिड़ककर कहा-रहने दो। अभागा मर जाय, वही अच्छा। किसी का एहसान तो न लेना पड़े।