सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोदान.pdf/२६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
गोदान : 269
 

उनतीस

नोहरी उन औरतों में न थी, जो नेकी करके दरिया में डाल देती हैं। उसने नेकी की है, तो उसका खूब ढिंढोरा पीटेगी और उससे जितना यश मिल सकता है, उससे कुछ ज्यादा ही पाने के लिए हाथ-पांव मारेगी। ऐसे आदमी को यश के बदले अपयश और बदनामी ही मिलती है। नेकी न करना बदनामी की बात नहीं। अपनी इच्छा नहीं है, या सामर्थ्य नहीं है। इसके लिए कोई हमें बुरा नहीं कह सकता। मगर जब हम नेकी करके उसका एहसान जताने लगते हैं, तो वही जिसके साथ हमने नेकी की थी, हमारा शत्रु हो जाता है, और हमारे एहसान को मिटा देना चाहता है। वही नेकी अगर करने वाले के दिल में रहे, तो नेकी है, बाहर निकल आए तो बदी है। नोहरी चारों ओर कहती फिरती थी-बेचारा होरी बड़ी मुसीबत में था। बेटी के ब्याह के लिए जमीन रेहन रख रहा था। मैंने उसकी यह दसा देखी, तो मुझे दया आई। धनिया से तो जी जलता था, वह रांड तो मारे घमंड के धरती पर पांव ही नहीं रखती। बेचारा होरी चिंता से घुला जाता था। मैंने सोचा, इस संकट में इसकी कुछ मदद कर दें। आखिर आदमी ही तो आदमी के काम आता है। और होरी तो अब कोई गैर नहीं है, मानो चाहे न मानो, वह हमारे नातेदार हो चुके। रुपये निकालकर दे दिए, नहीं लड़की अब तक बैठी रहती।

धनिया भला यह जीट कब सुनने लगी थी। रुपये खैरात दिए थे? बड़ी खैरात देने वाली। सूद महाजन भी लेगा, तुम भो लोगी। एहसान काहे का। दूसरों को देती, सूद की जगह मूल भी गायब हो जाता, हमने लिया है, तो हाथ में रुपये आते ही नाक पर रख देंगे। हमीं थे कि तुम्हारे घर का बिस उठाके पी गए, और कभी मुंह पर नहीं लाए। कोई यहां द्वार पर नहीं खड़ा होने देता था। हमने तुम्हारा मरजाद बना लिया, तुम्हारे मुंह की लाली रख ली।

रात के दस बज गए थे। सावन की अंधेरी घटा छाई थी। सारे गांव में अंधकार था। होरी ने भोजन करके तमाखू पिया और सोने जा रहा था कि भोला आकर खड़ा हो गया।

होरी ने पूछा-कैसे चले भोला महतो। जब इसी गांव में रहना है तो क्यों अलग छोटा-सा घर नहीं बना लेते? गांव में लोग कैसी-कैसी कुत्सा उड़ाया करते हैं, क्या यह तुम्हें अच्छा लगता है? बुरा न मानना, तुमसे संबंध हो गया है, इसलिए तुम्हारी बदनामी नहीं सुनी जाती, नहीं मुझे क्या करना था।

धनिया उसी समय लोटे में पानी लेकर होरी के सिरहाने रखने आई। सुनकर बोली-दूसरा मरद होता, तो ऐसी औरत का सिर काट लेता।

होरी ने डांटा-क्यों बे-बात की बात करती है। पानी रख दे और जा सो। आज तू ही कुराह चलने लगे, तो मैं तेरा सिर काट लूंगा? काटने देगी?

घनिया उसे पानी का एक छींटा मारकर बोली-कुराह चले तुम्हारी बहन, मैं क्यों कुराह चलने लगी। मैं तो दुनिया की बात कहती हूं, तुम मुझे गालियां देने लगे। अब मुंह मीठा हो गया होगा। औरत चाहे जिस रास्ते जाय मरद टुकुर-टुकुर देखता रहे। ऐसे मरद को मैं मरद नहीं कहती।

होरी दिल में कट जाता था। भोला उससे अपना दुख-दर्द कहने आया होगा। वह उल्टे उसी पर टूट पड़ी। जरा गर्म होकर बोला-तू जो सारे दिन अपने ही मन की किया करती है, तो मैं तेरा क्या बिगाड़ लेता हूं? कुछ कहता हूं तो काटने दौड़ती है। यही सोच।