एक नया जन्म ले रहा है।
उन्होंने मालती के चरण दोनों हाथों से पकड़ लिए और कांपते हुए स्वर में बोले-तुम्हारा आदेश स्वीकार है मालती।
और दोनों एकांत होकर प्रगाढ़ आलिंगन में बंध गए। दोनों की आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी।
सिलिया का बालक अब दो साल का हो रहा था और सारे गांव में दौड़ लगाता था। अपने साथ वह एक विचित्र भाषा लाया था, और उसी में बोलता था, चाहे कोई समझे या न समझे। उसकी भाषा में ट, ल और घ की कसरत थी और स, र आदि वर्ण गायब थे। उस भाषा में रोटी का नाम था ओटी, दूध का तूत, साग का छाग और कौड़ी का तौली। जानवरों की बोलियों की ऐसी नकल करता है कि हंसते-हंसते लोगों के पेट में बल पड़ जाता है। किसी ने पूछा-रामू कुत्ता कैसे बोलता है? रामू गंभीर भाव से कहता भों-भों और काटने दौड़ता। बिल्ली कैसे बोले? और रामू म्यांव-म्यांव करके आंखें निकालकर ताकता और पंजों से नोचता। बड़ा मस्त लड़का था। जब देखो खेलने में मगन रहता, न खाने की सुधि थी, न पीने की। गोद से उसे चिढ़ थी।
उसके सबसे सुख के क्षण वह होते, जब द्वार पर नीम के नीचे मनों धूल बटोरकर उसमें लोटता, सिर पर चढ़ाता, उसकी ढेरियां लगाता, घरौंदे बनाता। अपनी उम्र के लड़कों से उसकी एक क्षण न पटती। शायद उन्हें अपने साथ खेलने के योग्य न समझता था।
कोई पूछता-तुम्हारा नाम क्या है?
चटपट कहता-लामू।
'तुम्हारे बाप का क्या नाम है?'
'मातादीन।'
'और तुम्हारी मां का?'
'छिलिया।'
'और दातादीन कौन है?'
'वह अमाला छाला है।'
न जाने किसने दातादीन से उसका यह नाता बता दिया था।
रामू और रूपा में खूब पटती थी। वह रूपा का खिलौना था। उसे उबटन मलती, काजल लगाती, नहलाती, बाल संवारती, अपने हाथों कौर बना-बनाकर खिलाती, और कभी-कभी उसे गोद में लिए रात को सो जाती। धनिया डांटती, तू सब कुछ छुआछूत किए देती है, मगर वह किसी की न सुनती। चीथड़े की गुड़ियों ने उसे माता बनना सिखाया था। वह मातृ-भावना जीता-जागता बालक पाकर अब गुड़ियों से संतुष्ट न हो सकती थी।
होरी के घर के पिछवाड़े जहां किसी जमाने में उसकी बरदौर थी, उसी के खंडहर में सिलिया अपना एक फूस का झोंपड़ा डालकर रहने लगी थी। होरी के घर में उम्र तो नहीं कट