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मंगलसूत्र : 337
 


-तुम्हारे प्रेम पर मेरा ही अधिकार रहेगा।

-स्त्रियां तो पुरुषों से ऐसी शर्त कभी न मनवा सकें?

-यह उनकी दुर्बलता थी। ईश्वर ने तो उन्हें पुरुषों पर शासन करने के लिए सभी अस्त्र दे दिये थे।

संधि हो जाने पर भी पुष्पा का मन आश्वस्त न हुआ। सन्तकुमार का स्वभाव वह जानती थी। स्त्री पर शासन करने का जो संस्कार है वह इतनी जल्द कैसे बदल सकता है। ऊपर की बातों में सन्तकुमार उसे अपने बराबर का स्थान देते थे। लेकिन इसमें एक प्रकार का एहसान छिपा होता था। महत्त्व की बातों में वह लगाम अपने हाथ में रखते थे। ऐसा आदमी यकायक अपना अधिकार त्यागने पर तैयार हो जाय, इसमें कोई अवश्य रहस्य है।

बोली-नारियों ने उन शस्त्रों से अपनी रक्षा नहीं की, पुरुषों ही की रक्षा करती रहीं। यहां तक कि उनमें अपनी रक्षा करने की सामर्थ्य ही नहीं रही।

सन्तकुमार ने मुग्ध भाव से कहा-यही भाव मेरे मन में कई बार आया है पुष्पा, और इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर स्त्री ने पुरुष की रक्षा न की होती तो आज दुनिया वीरान हो गई होती। उसका सारा जीवन तप और साधना का जीवन है।

तब उसने उससे अपने मंसूबे कह सुनाये। वह उन महात्माओं से अपनी गौरूमी जायदाद वापस लेना चाहता है, अगर पुष्पा अपने पिता से जिक्र कर और दस हजार रुपये भी दिला दे तो सन्तकुमार को दो लाख की जायदाद मिल सकती है। सिर्फ दस हजार। इतने रुपये के बगैर उसके हाथ से दो लाख की जायदाद निकली जाती है।

पुष्पा ने कहा-मगर वह जायदाद तो बिक चुकी है।

सन्तकुमार ने सिर हिलाय। बिक नहीं चुकी है, लुट चुकी है। जो जमीन लाख-दो लाख में भी सस्ती है, वह दस हजार में कूड़ा ही गई। कोई भी समझदार आदमी ऐसा गच्चा नहीं खा सकता और अगर खा जाय तो वह अपने होश हवास में नहीं है। दादा गृहस्थी में कुशल नहीं रहे। वह तो कल्पनाओं की दुनिया रहते थे। चक्क दिया और जायदाद निकलवा दी। मेरा धर्म है कि मैं वह जायदाद वापर यूं अगर तुम - ला सन्न कुछ हो सकता हैं। डाक्टर साहब के लिए दस हजार का इन्तजाम कर देना कोई ने ' के बात नहीं पुष्पा ए मिनट तक विचार में डूबी रहीफिर संदेहभान स बोली- मुझे तो आशा नहीं ति दादा के पास इतने रुपये पालन हों। -जरा व है ना। कहूं कैसे-क्या मैं उनका हाल जानती नहीं उनजी वाटरी अच्छी चलती है, पर उनके खर्च भी तो हैं । बीरू के लिए हर महीने पांच सौ रूपये इगॉड गेजने पड़ते हैं। तिलोतमा की पढ़ाई का जर्च भी कुछ कम नहीं। संचय करने का उनकी अग्वत नहीं है। मैं उन्हें संकट में नहीं डालना चाहती। -मैं उधार मांगता हूं। खैरात नहीं। -जहां इतना घनिष्ठ संबंध है वहां उधार के माने खैरात के सिवा और कुछ नहीं। तुम रुपये न दे सके तो वह तुम्हारा क्या बना लेंगे ? अदालत ज , दुनिया

सकसगा, पचायत

नहीं कर नहीं सकतेलोग ताने देंगे। सन्तकुमार ने तीखेपन से कहा तुमने गयह से स्मझ लिया कि मैं रूपये न दे सऊंगा