पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/११७

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3 ६० [गोरख-बानी जिहि घरि चंद सूर नहिं ऊगै, तिहि धरि होसी उजियारा । तिहां जे पासण पूरी५ तो सहज का भरो पियाला, मेरे ग्यांनी ॥४॥ मन माहिला हीरा वीधा सो सोधीने लीणां, सो पाणां सो पीवणां' मछिंद्र प्रसाद जती गोरप वोल्या, विमल रस जोई जोई ३० मिलणां, सेरे ग्यांनी ॥४॥ गोरप जोगी तोला तोले, भिडि भिडियाधीले १२रतन अमोले ।।टेक।। याच पाई विद न पढ़िवा'3 कंध । लाप तोला मोल १४ जाये ५, जे एक पिसै विंदा । १ । जैसी मन उपजै ७ तेसा करम' ८ करै। काम क्रोध लाम ले ९ संसार सूनां मरे ॥२॥ (पहचान ) प्राप्त की, यह पुराए के मेल से पुरुष के रस ( ब्रह्मानन्द ) की रक्षा हरता है। और इस प्रकार पुरुष के द्वारा पुरुप ( अपने प्रमत्व ) की उत्पत्ति करता है। (टसे महानुभूति हो जाती है।) जहाँ सूर्य चंद्र के उगे यिना (प्रमज्योति का) प्रकाश होता है यहाँ (मन में) पासन मारने से (स्थिति होने से ) सहजानंद प्राप्त होता है। मन में का विधा दोरा (पहुँच में पाया दुधा धारमज्ञान) मोली का प्राप्य है। यही उसका माना-पीना है। टसको देखकर ही निर्मल सहज मानन्द मिलता है ॥४॥ गोरग जोगी परी पास से गोल तोल कर पाणिज्य करता है। मिड-मिय (बामा दोहो)कर यह प्रमूएप ररन (शुभ अथवा परमा) को गोठ पाँधमा । मगर सिंदु (या पिंद अक्षय भाई, 'अस्ति' से भी सिख को है और 'पाप' में भी। ) का शरीर (पंध, कंध ) नष्ट नहीं होगा 121 १. (MoRE'नटी . (4) उगला । ३. (घ) नहीं । (५ कारन । ५. (प) । प्रतियों में मेरे पानी मेरे यार है । ६. (प) गरे। ३ (१) योग । ८ (क)मन 21 ६. ( 1१०. () में में नहीं। ११(2): गामि भी भी। (क) बानीले । १३.)गाई श्रा, for १४. (गा।१५.(कमा १६.(प): दिविट। ? (1) १८. () १६. (4) MIR Tir --