पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भी गमाई ॥२॥ [गोरख-बानी द्वादमी त्रिकुटी यता पिंगुला, चवदासि चित मिलाई। पोरस कवल दन सोल वतीसी. जुग मरन दम द्वार निरंजन उनमन वासा, मबदें उलटि समांनां । भात गोरपनाय मछीद्र नां" पूना अविचन थोर' रहांनां ।३। ॥१३॥ ॐ नमो सिवाह, यात्रु नमो सिवाइ । अहनिमि पाइ मंत्र कोण र उपाइ॥ भ्यंनस्यने अप्यरं जे देवरे बुझाड', ताका में चना बाबु सो गुरु हमार" ॥टेक।। कार २ छ बाबू मूल मंत्र धाग, कार१२ व्यापीले ३ सकल संसाग। कारः नाभी हदै ४ देव गुर साई, कार साधना सिधि न हाई ॥१॥ मम्मेदपु. गांग पता है कि इस प्रकार में मुल प्रनिधन रमें हो गया। प्रष्टल =महाभारत के अनुसार कुन पर्यन मान-मरम नय, पर. धिमान्. सयान, पि.५और पारिपार | गंमतः योगमागं पातों में को मोटर मापदाहिमा का गोगियों में पड़ा महरा माना जाता । पर्वामी गोम सपा के लिए देवि मागे ग्रंथ 'सपिन'mm नमकार गिय की नाकार: | राम दिन प्राणवायु में पनगर पो बार मांमद्वारा गा रहता। समर मंत्र को मिन दान दिया। हम भारों को जो में sirih: . *7 piti.IT टमा गंगा। रा(i) मा (meri)। म में मारी ! (5) "24", 17" 1712. (5) T11:10: ( (4) tir) अगर दुक : 733 11 (*) * 3 (i) Ir.'s (**): 115,5. (5) IT!

1) 173 Pojo? ?' *;; 07574 !

5) KI! 3