[गोरख-बानी १२ बानियां कई हस्तलिखित प्रतियों में मिलती हैं, जिनका उल्लेख नीचे किया जाता है। , (क) प्रति-पौड़ी हस्तलेख--यह प्रति पौड़ी, गढ़वाल के पंडित तारा- दत्त गैरोला को जयपुर से प्राप्त हुई थी। इसके चार विभाग हैं। पहले में दादू, कबीर, नामदेव, रैदास और हरिदास के अन्य हैं । दूसरे में योगियों को रचनाएं हैं। तीसरे में दाद के सुंदरदास, गरीबदास, रज्जबदास आदि कई शिष्यों की बानियां हैं, और चौथे में सर्वांगी ग्रन्थ, जिसमें रज्जब ने गोरखनाथ से लेकर तुलसीदास तक समस्त योगी साधु, संत, महात्माओं को चुनी बानियों का उत्तम संग्रह किया है। इस ग्रन्थ से योगियों की बानियां भी नकल कराकर उनका मैंने मूल से मिलान किया। इस प्रति के अंतिम अंश के साथ पुष्पिका नष्ट हो गयी है, इस लिए उसके लिपिकाल का पता नहीं चलता। यह असंभव नहीं कि यह प्रति रज्जव जी हो के लिए अथवा उनके समय में लिखी गई हो। यदि यह बात हो तो इसका समय संवत् १७१५ के आसपास होना चाहिए। यह सबसे पहली प्रति है जिसके द्वारा योग-साहित्य के साथ मेरा साक्षात् परिचय हुआ। (म) को छोड़कर और सब प्रतियों का उल्लेख उस क्रम से किया गया है जिससे वे मुझे मिली हैं (ख) जोधपुर दरबार पुस्तकालय की प्रति । जोधपुर के पुरातत्व-विभाग के अध्यक्ष पं० विश्वेश्वरनाथ जी रेऊ ने इसकी नकल कराकर भेजने की कृपा की। परन्तु इसमें गोरखनाथ की रचनाओं में केवल सबदियां आई। विधिवशात् उस समय गोरख की अन्य रचनाएं न प्राप्त हो सकी । इसका भी समय अज्ञात (ग) यह प्रति मुझे जोधपुर श्री गजराज ओझा से उपलब्ध हुई। इसमें श्रारंभ में कबीर की साखियां हैं। तदुपरांत योगियों की सदियां और अंत में हठयोग के कुछ हिंदी ग्रन्थ । इसमें भी गोरख की केवल सबदियां हैं, अन्य रचनाएं नहीं। लिपिकाल इसका भी ज्ञात नहीं। (घ) यह प्रति मुझे जोधपुर के कविया श्री शुभकरण चारण से प्राप्त हुई। यह वृहत संग्रह प्रन्थ है जिसे एक निरंजनी साधु ने प्रस्तुत किया था। The
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