पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१४

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भूमिका . इसमें हरिदास आदि निरंजनी साधुओं और कबीर श्रादि निर्गुणो संतों की वानियों के साथ-साथ योगियों की वानियां भी हैं। यह प्रति संवत् १८२५ में लिखी गई थी। () मंदिर घावा हरिदास, नारनौल, राज्य पटियाला में है और कार्तिक सुदी अष्टमी गुरुवार १७६४ की लिखी है। इसे गंगाराम निरंजनी वैष्णव न स्वामी रूपदास के पठनार्थ जयपुर में लिखा था । नागरी- प्रचारिणी सभा की पंजाब-खोज के विवरणों में इसकी नकल की गई थी। (च) यह प्रति श्रीयुक्त पुरोहित इरिनारायण जी, बी० ए०, जयपुर के पास है। इसमें बहुत से ग्रन्थ हैं। प्रति का लिपिकाल पुष्पिका में इस प्रकार दिया हुआ संवत् १७१५ वर्षे शाके १५८० महामंगलीक फाल्गुन मासे शुक्लपक्षे त्रयोदस्यां तिथौ १३ गुरुवासरेः डिंडपुर मध्ये स्वामी पिराग- दास जी शिष्य स्वामी माधोदास जी तरिशष्य वृन्दावनेनालेखि श्रात्मार्थे । शुभं भवतु ॥ श्री रामो जयति ॥ (छ) यह प्रति भी पुरोहित जी के पास है । यह भी बड़ा संग्रह-ग्रन्थ है। रज्जव जी की साखी की समाप्ति के बाद जो योगियों की बानी के कुछ पीछे भाती है, लिपिकाल में यों दिया है- संवत् १७४१ जेठ मासे ॥ थावर वारे ॥ तिथिता ॥८॥ दीन ५ मै लिपि पर्ति स्वामी साई दास को सुं लिपि ॥ (ज) यह प्रति भी उक्त पुरोहित जी के पास है और सं० १५५५कीलिखीहै। (झ) इस प्रति की नकल एक महत्वपूर्ण सूत्र के द्वारा करायी गई है। बाबा ज्वालानाथ, ग्राम अडिंगापूर कुटी, पो० औ० माधौगंज, जिला हरदोई के पास इसका होना बताया गया है। नकन तो उपलब्ध है, किंतु मूल से मिलान के उद्देश्य से जब उक्त पते से पत्र भेजा गया तो डेढ लेटर श्राफिस से वह वापिस पा गया। उस पर माधौगंज पो० औ० के किसी व्यक्ति ने लिखा था कि उस हलके उक्त नास का कोई स्थान नहीं है। इस नकल का उल्लेख करना इस लिए आवश्यक हो गया है कि गोरखनाथ के नाम से प्रचलित कुछ रचनाएं इसमें सेवादास की कही गई हैं और कुछ अन्यों को