पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१५५

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१२२ [ गोरख-बानी ईकीस' ब्रह्मड भाठी चिगावै२, पीवत सदा मतिवालं, मनसा कलालिनि भरि मरि देवै आछा अाका मद नां प्याल५ ॥टेक।। अमृत ६ दाषी भाठी भरिया, ता मधैं गुड़ झकोल्या । मन महुवा तन धाहुवा१०, बनासपती अठारै मोल्यां११ ॥ भ्रमर २ गुफा मैं मन थरि ध्यान, बैस्या3 आसण वाली। चेतनि१४ रावल यह भरि छाक्या'५, जुग जुग लागो ताली ।२। तृकुटी संगम१७ कूपा भरिया४, मदनीपज्या१९ अपारं। कुसमल होता ते झड़ि पड़िया२०, रहि गया२१ तहाँ तत सारं ।३। नाध सत्य बादशाह की बीबी है, संतोप शाहज़ादा है और क्षमा तथा भक्ति दो दाई हैं। श्रादिनाथ के नाती-शिष्य और मत्स्येन्द्रनाथ के पुत्र-शिष्य गोरख- ने इस प्रकार यह काया-रूप-नगरी बसाई है ॥ २७ ॥ इक्कीस ब्रह्मांड में मट्टी चुनाई जाती है (अमृत-साव होता है ) रिसे पीकर (योगी) सदा मतवाला रहता है । इच्छा-रूप कलालिनी अच्छा अच्छा प्याला मदिरा का भर कर देती है। अमृतानुभव की दाख भट्टी (पर के पात्र में) भरी गयी । उसमें गुद भी डाला गया । मन ने महुए का स्थान लिया, तन ने धाहुड़ का । और भी अठारह प्रकार की वनस्पतियों उसमें डाली गयीं। ब्रह्मरंध्र में आसन लगाकर (वात योगी) अचल ध्यानस्थ बैठ गया । इस प्रकार चेतन (आत्मा) रूप रावल ने भर भर कर मद छका और युग युग तक ताली रहने वाला ध्यान ( समाधि; तादीनशा) लग गयी। त्रिकुटी संगम (जहाँ इडा पिंगला मिलती हैं)-रूप कूपी मद से भर गयी। अपार मद तय्यार हुआ। १. (घ) यकबीसवै । २. (घ) चिगाई । ३. (घ) कलालणि; (क) कलानि (१) ४. (घ) अाछे अाछे । ५. (घ) मदन पयालं । ६. (घ) यंम्रत । ७. (घ) (घ) मध्ये गुल । ६. (क) जन्म हुवा; (घ) मन महुडा । १०.(घ) धाहड़या । ११. (घ) मेल्या । १२. (घ) भवर । १३. (घ) बैठा । १४. (घ) चेतन । १५. (क) छिक्या । १६. (घ) जुगि जुगि। १७. (घ) संजम । १८. (घ) कूपी भरीया । १९. (घ) नीपज्या । २९. (घ) पड़ीया । २१. (घ) भरीया।८. गईया।