पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१५४

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गोरख-बानी] १२१ अठारह भार कोट कठंजरा लाइलै२, बहतर कोठडी निपाई। नव सुत्र ऊपरै जंत्र फिरै, तब काया गढ़ लिया न जाई ।४। अनहद घड़ी घड़ियाल बजाइ लै, परम जोति दुइ दीपक लाई १५ काम क्रोध दोइ गरदनि मारिलै, ऐसी अदली पातिसाही, बाबै आदम चलाई। > । तहां सत्य' बीबी संतोष साहिजादा, षिमां भगति द्वै१ हाई। आदिनाथ नाती मछिंद्र नाथपूता, काया नगरी गोरष वसाई ।६।२७ घंटिका, जिह्वामूल, तालु, अश्वं दंत मूल, नासिकान, नासिकामूल, भ्रूमध्य, ललाट और नेत्र) सोलह खाइयाँ हैं। जैसे खाइयों को पार करना गढ़ में प्रवेश करने के लिए श्रावश्यक है वैसे ही योग सिद्धि के लिए श्राधारों का ध्यान आवश्यक है। इस गढ़ के नौ दरवाजे ( नव रंध्र ) तो स्पष्ट दिखाई देते है, दशमद्वार (ब्रह्मरंध्र ) नहीं दिखाई देता। कोट पर नाना प्रकार के वृक्षों की लकड़ी का कठंजरा (काष्ट पंजर) लगाया और बहत्ता कोउड़ियाँ बनाई (निपाई = उत्पन्न की) जिस प्रकार पुराने काल में लकड़ी कमरों को छाये रहती थी उसी प्रकार इस काया को नाही-जाल छाये रहता है। 'अठारह' और 'अठारह मार' संत और योग साहित्य में वनस्पतियों के लिए कई यार पाया है। (देखिए आगेवाला पद और कबीर-अठारह भार बनासपती कहिये गिर परबत से मारे । कोटा संग्रह, पद ४३६) नादियां ७२००० मानी जाती हैं किन्तु ७२ प्रधान हैं । नव द्वारों पर जंजीरें ( सूत्र ) चढ़ी हैं और यंत्र लगे हैं इस लिए कायागढ को कोई छीन नहीं सकता अर्थात् नवरंध्र रुद्ध कर दिये गये हैं उनके द्वारा विषय भीतर प्रवेश नहीं कर सकते हैं। अनाहत नाद रूपी घड़ी को दियाल बजाता है अर्थात् घड़ी घड़ी पर जोगों को सावधान करता है । परम ज्योति के दो दीपक (सगुण और निगुण ज्ञान) बल गये । काम और क्रोध की गर्दन मारी गयी । याया दम ने ऐसी बादशाही हुकूमत चलायी। १. (घ) अठारे । २. (घ) लायलै । ३. (घ) वहतरि केटड़ी। ४. (प) ऊपरि । ५. (घ) घड़ावलि । ६. (घ) दोय । ७. (घ) जलाई। ८. (घ)आदमि ६. (घ) सति । १०. (घ) भक्ति । ११. (घ) होय । १२. (घ) ना । १३. (घ) गोरषनाथ।