पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/१९५

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. .. [गोरख-दानी कोयन मोरी आंबो बास्यौ र गगन मछलड़ी बगलौ ग्रास्यौ" ।। करसन पाकु रषवालू षाधू, चरि गया मृघत्ता' पारधी बांधू३। सींगी नांदै जोगी पूरा, गोरषनाथ परन्यां तिहां चंद न सूरा ॥६०॥ रूप दूध देती जान पड़ती थी। ) किंतु अब माया २१ कोली का तामसिक रूप हट गया है और वह सात्विक रूप धारण कर विधा रूप दूध देने लगी है, जिसमें से मनसा अथवा बुद्धि रूप भैंस उसे पिलो रही है, ( तया तत्व या ब्रह्मा रूप मक्खन निकाल रही है।) माया सास है । जहाँ तक व्यावहारिक अथवा मायिक क्षेत्र का सम्बन्म है जीव माया का पुत्र है। उसने सहजानुभूति अथवा ब्रह्मा- नुभूति से परिणय कर लिया है। इसलिए यह सास (माया) की बहू है। इस ब्रह्मानुभूति के पूर्ण रूप से प्रकट होने पर मारा वैसी ही निवन्न पड़ जाती है जैसे बच्चा । नाथयोग के अनुसार ब्रह्मानुभूति (अस्त पान) शरीर को भी उसी तरह पुष्ट करती है जैसे माता बच्चे को। यही बहू (ब्रह्मानुभूति) का सास को पामने में हिंडोला खिलाना है। मनसा ( कोयल) जो पहले माया (आम) के पौरने, पुष्पित होने पर धानन्द मनाती थी अब अन्तर्मुच वृत्ति हो जाने के कारण स्वयं प्रम्हानुभूति से पुष्पित तथा सुरभित है, और साधक का मायिक थस्तित्व मी उस भानन्द में मग्न हो रहा है। यही शाम का बासना; बोली मोबना है । आकाश में पहुँची हुई मछली (चेतना) ने जो पहले जल प्रकृति के अन्तर्गत थी सगुल्ले अर्थात् मायिक अहंकार को निगल लिया है जो पहले चेतना या प्रात्मा को निगले हुए था। समाधि ही योगी की पकी खेती है। इसमें न घुसने देनेवाला अहकार इत्यादि हैं जो समाधि अवस्था के सिद्ध हो जाने पर नष्ट हो गया है। इस प्रकार खेती ने रखनेवाले को खा राना। चरने वाले मृग (मन अथवा कर्मेन्द्रियों) ने जो पहले इतना चंचल था या थे अम अनुभव हो जाने पर अपनी चंचलता को छोड़कर पारधि (कास) को भी बाँध लिया है। अब तक तो जोगी सींगी नाद परता था अब सींगोनाद (अर्थात् अनाहत नाद) बोगी को पर रहा है, पूर्ण कर रहा है । पहले ब्रम्हानुभूति के बिना वह खोसला था, अब धनाहत नाइ के साथ पानेवाली अनुभूति से पूर्ण हो गया है । गोरखनाथ ने वहाँ अर्थात् परम ज्योति के साथ, स्नेह बंधन है, यहाँ न सूर्य है, न चन्द्रमा ६०॥ १. () श्राविलो। २. (क) बास्यो । ३. (घ) गिगन की मछली । ४.(घ) दुगलौ। ५. (घ) गरास्यौ । ६. (प) करसण पाको । ७. () रघवाली पावै । ८. (घ) वाघौ । ९.(फ) प्रन्यां । १०. (घ) तहां।