पृष्ठ:गोरख-बानी.djvu/२०६

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गोरख-बानी] १६७ सप्त गांठि सरीर की नारी । अरध उरध मैं लाइलै ताली। विच विच लागी नौ नौ कली । अष्ट कवल वतीस पांषुड़ी॥१३॥ नाद रह्या सरबत्र पुरि । गगन मंडल मैं षोजी अवधू वस्त अगोचर मूर। नगर कोटि की बहुविधि गली। सुन्दिर एक राजंदरि खड़ी ॥१४॥ पंच महा रिषि तहां कुटवाल । तिनकी तृया महा झूझारि। इनहिं मारि जे लागै पंथा। सुन्दिर जीतै लोक सौं कथा ॥१॥ इला प्यंगुला सुषमनां नाड़ी। छुटै भ्रम मिलै बनवारी। पंच तच विष अंमृत बसई । गुरुवचने अंमृत भया अंचई ॥१६|| . अमृत सावक पूर्णिमा का चंद्र कैसे क्षीण हुथा ? क्योंकि सूर्य मे चंद्रमा को जौटाकर स्वयं पवन पर अधिकार कर लिया है। स्वप्न में भी इंदियां कामना को ग्रहण न करें भर्थात मनसा इच्छा) से प्रेरित न हों, इसलिए योगीश्वर प्रलय अर्थात् मनोविनय करना निश्चित करते हैं ॥१२॥ शरीर की नादियों में सात गांठे हैं (संभवतः षट्चक्र और सातवां सहस्रार । ) अधः और ऊर्ध्वगामी जो श्वास क्रिया है, उसमें ध्यान लगायो । थीच बीच में नौ नौ कलियाँ (नवरंध्र) लगी हुई हैं अष्ट कवल (-योगियों में भाठ कमल भी मान जाते हैं । सातवां ज्ञान चक्र में सहस्रदल कमल और श्राठवां विज्ञान में २१ सहस्त्रदल कमल । देखो आगे मंय 'अष्ट चक्र'-) और यत्तीस पंदियां (संभवतः बत्तीस लक्षण ) हैं । संस्कृत अनुवाद भी इसमें सहायक नहीं है। उसमें बत्तीस पंखुड़ियां और नौ कलियों का उल्लेख नही है। और अष्ट कवल का अर्थ 'पनाण्यष्टौ लिया गया है ॥१३॥ अनाहत नाद सर्वत्र मरा हुना है। हे अवधूत, अगोचर, मूल तत्व (शिव को ) श्राकाश मंडल, ब्रह्मरंध्र में हूँ ढो। शरीर रूप को नगर कोट अथवा प्राचीर से रक्षित नगर है उसमें कई मार्ग है। किंतु एक स्त्री (कुंडलिनी माया) राजद्वार पर मार्ग को रोके खड़ी है, मूल वस्तु तक नहीं पहुँचने देतो ॥१॥ इस नगर में पांच महर्षि (पांच कमेंद्रियाँ) कोतवाल है किसी को बंदर बाकर राजा का परिचय (आत्मज्ञान ) नहीं होने देते । उनको भी (मनसा) बड़ी बलवती और युद्ध कुशव है। इनको ( पंचेद्रियों को) मार कर बो मार्ग पर चलने लगे वह उस सुन्दरी (माया) को भी बीत लेता है, और साम हो बगत (चोक) और शरीर (या) को भी ॥११॥