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[गोरख-बानी १६८ इति श्री गोरषनाथ विरंचते प्राण संकली सरीर विचारण, एवं प्राण संकली जेन्य विचारत, पापे न लिपंते पुने न हर ते, मृतलोके भये अस्थित अमर लोकेषु गछिते। ॐ नमो सिवाईॐ नमो सिवाई, गुरु मछौंद्रनाथ पादुका नमस्तते इती प्राण संकली ग्रंथ जोग सास्त्र सपूरण समापतः । इला, पिंगला और सुषुम्णा ये तीन मुख्य प्राणवाहिनी नादियाँ हैं । जिनके साधन से भ्रम छूटता है और ब्रह्म साक्षात्कार होता है । पंच तत्व के संसर्ग में अमृत ही विष होकर रहता है। वह गुरु के वचनों से बव अमृत हो जाता है, तब (शिष्य उसका) पान करता है ॥१६॥