गोरख-बानी] प्रहनिसि अगनि पाप कूषाइ । संधै संधै पवन लुकाइ । मन है धीर थिर बहै पवन । सिवपुरी जीता राषै कवनं ।।१५।। ब्रह्म सागर सो वधैं ज्यद । षीर सागर सोष अजरांवर कंदा । बजर कछोटा भासण करै१२ । रोग व्याधि षुध्या' सब हरै॥१६॥ जड़ी बूटी भूलै मति कोह१५१ पहली रांड बैद की होइ॥५॥ जड़ी बूटी१४ अमर जे करै । तो बैद धनन्तर काहे मरै ॥१७॥ सोने रूपै सोझै काज । तौ फत राजा छाई ८ राज । पसुवा होइ११ जप नहीं जाप । सो पसुवा मोषिर क्यूर जात ॥१८॥ स्कंध, शरीर ) स्थिर हो जाता है। श्रथवा कंद (मूलाधार के पारव में स्थित कंद जिससे सब नाही जाल निकला है) के स्थिर होने से शरीर अजर और अमर हो जाता है। सोखे (शुक्र को उग्वंगामी करे ), जिस से शरीर पुष्ट होगा और ज्ञान बीपक अथवा ब्रह्मज्योति को पाले, और रात दिन उस प्रक्षाग्नि को प्रज्वलित रहने दे ॥१४॥ इस प्रकार वह अग्नि रात दिन पाप को जलाती रहेगी, जिसके भय से पवन भी प्रत्येक संधि में भाग कर बैठ जायगा । इस प्रकार पवन के स्थिर होने से मन भी धैर्यवान हो जायगा। तब तो शिव स्थान (मारंभ) को जीतने वाले भारमा को कौन रोक सकता है, बन्दी बना सकता है ||१५॥ ब्रह्म सागर (शुक्र) के सोखने (ऊध्वंगामी करने) से जीवनी शक्ति बढ़ती है, और पीर (अमृत)-सागर को सोखने से शरीर अजर और अमर हो जाता 1 बज्र कोपीन धारण करे, और बवासन जगावे, जिससे सब रोग व्याधि और दुपा का नाश हो जाय ॥१६॥ अगर सोने चोंदी से काम सिद्ध होता (सोझै) तो राजा ( भतृहरि १. (घ) ब्रह्म । २. (घ) पाय लुकाय । ३. (घ) संधै संघ । ४. (घ) होय । ५. (घ) थोर । ६. (घ) पवनां । ७. (घ) कवनां । ८. (घ) सार । ६. घ) बंधई जिंद । १०. (ध) कंध। ११. (घ) करछोटा । १२. (घ) में सारा चरण-~'अजरांवर सोपै बजर करै' । १३. (घ) पुध्या । १४. (घ) टी । १५. घ) कोय."कोय । १६. (घ) पहलें । १५. (4) सोनें। १८. (घ) छाई ९. (घ) पसवा होय । २०. (घ) मोच । २१. (घ) स्यौ। &
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